"हिन्दी व्याकरण का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Hindi devnagari.png|अंगूठाकार|उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण]]
[[हिन्दी]] भाषा का [[व्याकरण]] लिखने के प्रयास काफी पहले आरम्भ हो चुके थे। अद्यतन जानकारी के अनुसार [[हिन्दी व्याकरण]] का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के [[दामोदर पण्डित]] द्वारा रचित द्विभाषिक ग्रंथ [[उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण]] सिद्ध होता है।<ref>{{cite book |last=चटर्जी |first=
== अठारहवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
केटलार व्याकरण के लैटिन अनुवाद के प्रकाशन के एक वर्ष बाद ही प्रख्यात मिशनरी बेंजामिन शुल्ट्स का '''[[ग्रामाटिका हिन्दोस्तानिका]]''' Grammtica Hindostanica (हिन्दुस्तानी व्याकरण) सन् 1744 में प्रकाशित हुआ। यह व्याकरण लैटिन भाषा में है, जिसका पाँच पंक्तियों का पूर्ण शीर्षक
सन् 1771 में कापुचिन मिशनरी कासिआनो बेलिगाति द्वारा भाषा में लिखित "Alphabetum Brammhanicum" रोम से प्रकाशित हुआ। इसमें नागरी के साथ-साथ भारत की अन्य प्रमुख लिपिओं को चल टाइपों में मुद्रित किया गया है और इन पर विस्तृत विवेचना की गयी है। इसके भूमिका-लेखक Johannes Christophorus Amaditius (Amaduzzi) ने भारतीय भाषाओं के बारे में उस समय वर्तमान ज्ञान का सम्पूर्ण विवरण दिया है।
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यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि केटलार व्याकरण के लैटिन अनुवाद, शूल्ट्स व्याकरण एवं Alphabetum Brammhanicum के भूमिका सहित नागरी लिपि संबंधी अंश का हिन्दी अनुवाद अभी उपलब्ध है। 16 हिन्दी भाषा एवं लिपि के अध्ययन के लिए इन तीनों प्राचीनतम कृतियों का ऐतिहासिक महत्त्व है।
जार्ज हेडली (Hadley) का व्याकरण सन् 1772 में लंदन से प्रकाशित हुआ। इसके तरन्त बाद इससे बेहतर व्याकरण प्रकाशित हुए, जैसे - किसी अज्ञात लेखक का पोर्तुगीज़ भाषा में Gramatica Indostana रोम से 1778 में, जो हेडली के व्याकरण की अपेक्षा बहुत विकसित था। कलकत्ते के फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी विभाग के अध्यक्ष
== सिपाही विद्रोह (1857) के पूर्व उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
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एडविन ग्रीब्ज लिखित "A Grammar of Modern Hindi" बनारस से 1896 में प्रकाशित हुआ। इस लेखक ने केलॉग के हिन्दी व्याकरण को एक मानक कृति बताया है। परन्तु सामान्य लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ग्रीब्ज ने अन्य व्याकरण रचा। इसका संशोधित संस्करण 1908 में प्रकाशित हुआ। सन् 1921 में इस लेखक ने पूर्णतः नये रूप से "Hindi Grammar" नामक शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी व्याकरण लिखा, जिसमें ब्रज भाषा में कुछ नोट के सिवा हिन्दी के क्षेत्रीय अंतरों का कोई जिक्र नहीं किया गया। इसका पुनर्मुद्रण एशियन एजुकेशनल सर्विसेज ने 1983 में किया।
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लिखे गये हिन्दी व्याकरणों का थोड़ा विस्तृत विवरण
== बीसवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
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हिन्दी के राष्ट्रभाषा हो जाने पर विद्वानों का ध्यान इसके स्वतंत्र अस्तित्व की खोज पर जाने लगा। पं. [[किशोरीदास वाजपेयी]] ने "राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण" (1949) लिखकर हिन्दी व्याकरण की स्वतंत्र सत्ता पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं। उनके शब्दों में - "कोई व्याकरण अंग्रेजी के आधार पर लिखा गया है और कोई संस्कृत के आधार पर। हिन्दी के आधार पर हिन्दी का व्याकरण बना ही नहीं। तब तो उलझन होगी ही।"24 उनका "[[हिन्दी शब्दानुशासन]]" (1957) एक महत्त्वपूर्ण व्याकरण ग्रंथ है। इसका पंचम संस्करण संवत् 2055 वि. (सन् 1998 ई.) में प्रकाशित हुआ।
विदेशी वैयाकरणों के द्वारा लिखित हिन्दी व्याकरणों में
== तुलनात्मक व्याकरण ==
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== भाषाशास्त्रीय अध्ययन ==
बीसवीं शताब्दी में हिन्दी एवं उसकी बोलियों पर कई विद्वानों ने भाषाशास्त्रीय अध्ययन किया।
== हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन ==
# आरम्भ काल - सन् 1676 - 1855 ई.
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* 1. '''आदिकाल '''
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== नोट (सन्दर्भ-संकेत) ==
1. कामता प्रसाद गुरुः "हिन्दी-व्याकरण," नागरीप्रचारिणी सभा, काशी; प्रथम संस्करण संवत् 1977 (1920 ई.); षष्ठ पुनर्मुद्रण, संवत् 2017 (1960 ई.)।
2. कुछ अन्य भारतीय देशी भाषाओं के (Vernaculars) आरम्भ-काल के व्याकरण उपलब्ध होते हैं। जैसे- भीष्माचार्य कृत 'पंचवार्तिक' नामक मराठी व्याकरण तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दी का है। लगभग सभी साहित्य समृद्ध द्रविड़ भाषाओं (तमिल, कन्नड, तेलुगु और मलयालम) के प्राचीन व्याकरण उपलब्ध हैं।
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13. 'भारतीय अनुशीलन', महामहोपाध्याय [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] के सम्मान में समर्पित, 23वाँ हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली, 1933, विभाग 4, अर्वाचीन काल, पृ. 30-36.
14. "Indian and Iranian Studies",
15. देखें फुटनोट 3 का सन्दर्भ।
16. "हिन्दी के तीन प्रारंभिक व्याकरण", निर्देशक -
17. पुनर्मुद्रण: Firma K. L. Mukhopadhyaya, Calcutta, 1963. Edited with notes, biographical sketch and bibliography of writings on Lebedeff by Mahadev Prasad Saha; Foreword by Prof. Suniti Kumar Chatterji; कुल पृष्ठ 40+118. इस संस्करण की एक प्रति डेक्कन कॉलेज, पुणे में उपलब्ध है।
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19. वही, पृ. 6.
20.
21. भूमिका, पृ. 6.
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30. "हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन : एक दृष्टि", पृ.46 ; प्रकाशन विवरण हेतु देखें सन्दर्भ 31.
31. "हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन : एक दृष्टि", पृ.48-49। प्रकाशन विवरण इस प्रकार है - " समन्वय (क्षेत्रीय साहित्य सन्दर्भ)" (1996) - सं० उमाशंकर मिश्र; प्रकाशक - युवा साहित्य मंडल, 68, तुराबनगर, गाजियाबाद; 392 + 405 + 59 पृष्ठ। इसमें
== सन्दर्भ ==
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