"हिन्दी व्याकरण का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Hindi devnagari.png|अंगूठाकार|उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण]]
[[हिन्दी]] भाषा का [[व्याकरण]] लिखने के प्रयास काफी पहले आरम्भ हो चुके थे। अद्यतन जानकारी के अनुसार [[हिन्दी व्याकरण]] का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के [[दामोदर पण्डित]] द्वारा रचित द्विभाषिक ग्रंथ [[उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण]] सिद्ध होता है।<ref>{{cite book |last=चटर्जी |first=डॉ.डॉ॰ सुनीति कुमार |title=सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक 39, 1953 (लेख का शीर्षक-पण्डित दामोदर विरचित "उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण" |year=जनवरी 2002 |publisher=भारतीय विद्याभवन, |location=मुम्बई|id= |page= |accessday=10 |accessmonth= जुलाई|accessyear=2009 }}</ref> यह बारहवीं शताब्दी का है। यह समय हिंदी का क्रमिक विकास इसी समय से प्रारंभ हुआ माना जाता है। इस ग्रंथ में हिन्दी की पुरानी कोशली या अवधी बोली बोलने वालों के लिए संस्कृत सिखाने वाला एक मैनुअल है, जिसमें पुरानी अवधी के व्याकरणिक रूपों के समानान्तर संस्कृत रूपों के साथ पुरानी कोशली एवं संस्कृत दोनों में उदाहरणात्मक वाक्य दिये गये हैं। 'कोशली' का लोक प्रचलित नाम वर्तमान में 'अवधी' या 'पूर्वीया हिन्दी' है। १६७५ई. से कुछ पूर्व ब्रज भाषा के व्याकरण का एक ग्रंथ मिर्ज़ा ख़ान इब्न फ़ख़रूद्दीन मुहम्मद द्वारा लिखा गया है। १६ पृष्ठों के [[तुहफ़तुल हिन्द]] नामक इस संक्षिप्त ग्रंथ में हिन्दी साहित्य के विविध विषयों का विवेचन है जो क्रमशः इस प्रकार हैं - व्याकरण, छन्द, तुक, अलंकार, शृंगार रस, संगीत, कामशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र और शब्दकोष। १८९८ में एक डच विद्वान [[योन योस्वा केटलार]] द्वारा लिखे गए हिंदी व्याकरण के प्रमाण भी मिलते हैं। हिंदी विद्वान सुनीति कुमार चटर्जी भी अपने लेखों में इस ग्रंथ का उल्लेख मिलता है।
 
== अठारहवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
 
केटलार व्याकरण के लैटिन अनुवाद के प्रकाशन के एक वर्ष बाद ही प्रख्यात मिशनरी बेंजामिन शुल्ट्स का '''[[ग्रामाटिका हिन्दोस्तानिका]]''' Grammtica Hindostanica (हिन्दुस्तानी व्याकरण) सन् 1744 में प्रकाशित हुआ। यह व्याकरण लैटिन भाषा में है, जिसका पाँच पंक्तियों का पूर्ण शीर्षक डॉ.डॉ॰ ग्रियर्सन ने Linguistic Survey of India, Vol IX, Part I के पृ. 8 पर दिया है। शुल्ट्स को केटलार व्याकरण की जानकारी थी और अपनी भूमिका में इसका उल्लेख किया। हिन्दुस्तानी शब्द फारसी/अरबी लिपि में रोमन लिप्यंतरण सहित दिये गये हैं। देवनागरी लिपि की भी व्याख्या है। मूर्घन्य अक्षरों की ध्वनि की उसने उपेक्षा की है और (लिप्यंतरण में) सभी महाप्राण अक्षरों की। पुरुषवाचक सर्वनामों के एकवचन और बहुवचन रूपों का उसे ज्ञान था, परन्तु सकर्मक क्रियाओं के भूतकाल में कर्ता में प्रयुक्त 'ने' विभक्ति के बारे में वह अनभिज्ञ था।
 
सन् 1771 में कापुचिन मिशनरी कासिआनो बेलिगाति द्वारा भाषा में लिखित "Alphabetum Brammhanicum" रोम से प्रकाशित हुआ। इसमें नागरी के साथ-साथ भारत की अन्य प्रमुख लिपिओं को चल टाइपों में मुद्रित किया गया है और इन पर विस्तृत विवेचना की गयी है। इसके भूमिका-लेखक Johannes Christophorus Amaditius (Amaduzzi) ने भारतीय भाषाओं के बारे में उस समय वर्तमान ज्ञान का सम्पूर्ण विवरण दिया है।
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यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि केटलार व्याकरण के लैटिन अनुवाद, शूल्ट्स व्याकरण एवं Alphabetum Brammhanicum के भूमिका सहित नागरी लिपि संबंधी अंश का हिन्दी अनुवाद अभी उपलब्ध है। 16 हिन्दी भाषा एवं लिपि के अध्ययन के लिए इन तीनों प्राचीनतम कृतियों का ऐतिहासिक महत्त्व है।
 
जार्ज हेडली (Hadley) का व्याकरण सन् 1772 में लंदन से प्रकाशित हुआ। इसके तरन्त बाद इससे बेहतर व्याकरण प्रकाशित हुए, जैसे - किसी अज्ञात लेखक का पोर्तुगीज़ भाषा में Gramatica Indostana रोम से 1778 में, जो हेडली के व्याकरण की अपेक्षा बहुत विकसित था। कलकत्ते के फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी विभाग के अध्यक्ष डॉ.डॉ॰ जॉन बॉर्थविक गिलक्राइस्ट का "A Grammar of the Hindoostanee Language" सन् 1796 में प्रकाशित हुआ। यह व्याकरण उनके "A System of Hindoostanee Philology", खंड-1 का तीसरा भाग था।
 
== सिपाही विद्रोह (1857) के पूर्व उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
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एडविन ग्रीब्ज लिखित "A Grammar of Modern Hindi" बनारस से 1896 में प्रकाशित हुआ। इस लेखक ने केलॉग के हिन्दी व्याकरण को एक मानक कृति बताया है। परन्तु सामान्य लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ग्रीब्ज ने अन्य व्याकरण रचा। इसका संशोधित संस्करण 1908 में प्रकाशित हुआ। सन् 1921 में इस लेखक ने पूर्णतः नये रूप से "Hindi Grammar" नामक शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी व्याकरण लिखा, जिसमें ब्रज भाषा में कुछ नोट के सिवा हिन्दी के क्षेत्रीय अंतरों का कोई जिक्र नहीं किया गया। इसका पुनर्मुद्रण एशियन एजुकेशनल सर्विसेज ने 1983 में किया।
 
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लिखे गये हिन्दी व्याकरणों का थोड़ा विस्तृत विवरण डॉ.डॉ॰ जाधव की थीसिस में पृ. 148-171 के अंतर्गत देखा जा सकता है। 20
 
== बीसवीं शताब्दी के हिन्दी व्याकरण ==
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हिन्दी के राष्ट्रभाषा हो जाने पर विद्वानों का ध्यान इसके स्वतंत्र अस्तित्व की खोज पर जाने लगा। पं. [[किशोरीदास वाजपेयी]] ने "राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण" (1949) लिखकर हिन्दी व्याकरण की स्वतंत्र सत्ता पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं। उनके शब्दों में - "कोई व्याकरण अंग्रेजी के आधार पर लिखा गया है और कोई संस्कृत के आधार पर। हिन्दी के आधार पर हिन्दी का व्याकरण बना ही नहीं। तब तो उलझन होगी ही।"24 उनका "[[हिन्दी शब्दानुशासन]]" (1957) एक महत्त्वपूर्ण व्याकरण ग्रंथ है। इसका पंचम संस्करण संवत् 2055 वि. (सन् 1998 ई.) में प्रकाशित हुआ।
 
डॉ.डॉ॰ [[वासुदेवनन्दन प्रसाद]] लिखित "आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना" सन् 1959 में पटना से प्रकाशित हुआ, जिसका तेरहवाँ संस्करण 1977 में निकला। डॉ.डॉ॰ [[प्रभाकर माचवे]] की इस व्याकरण ग्रंथ पर प्रतिक्रिया इस प्रकार है - "हिन्दी में व्याकरण ग्रंथ, जो स्टैण्डर्ड माने जायें, बहुत थोड़े हैं। उन पुस्तकों में डॉ.डॉ॰ प्रसाद की रचना मैं सभी दृष्टियों से सर्वांगपूर्ण समझता हूँ। स्व. [[रामचन्द्र वर्मा]], स्व. [[कामता प्रसाद गुरु]] और आचार्य [[किशोरी दास वाजपेयी]] के बाद डॉ.डॉ॰ प्रसाद का कार्य अत्यन्त मूल्यवान् और उपयोगी हुआ है।"25 इस व्याकरण का 23वाँ संस्करण 1993 में निकला, जिसका द्वितीय पुनःमुद्रण सन् 2001 में हुआ।
 
विदेशी वैयाकरणों के द्वारा लिखित हिन्दी व्याकरणों में डॉ.डॉ॰ ज़ालमन दीमशित्स का [[रूसी भाषा]] में लिखा "Грамматика Языка хинди" (हिन्दी भाषा का व्याकरण) मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ है। इसका द्वितीय संस्करण (दो खण्डों में - 373 + 300 पृष्ठ) मास्को से सन् 1986 ई. में प्रकाशित हुआ। इसके प्रथम संस्करण का हिन्दी अनुवाद “हिन्दी व्याकरण” रादुगा प्रकाशन, मास्को से सन् 1983 ई. में प्रकाशित हुआ।
 
== तुलनात्मक व्याकरण ==
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== भाषाशास्त्रीय अध्ययन ==
 
बीसवीं शताब्दी में हिन्दी एवं उसकी बोलियों पर कई विद्वानों ने भाषाशास्त्रीय अध्ययन किया। डॉ.डॉ॰ विश्वनाथ प्रसाद ने "Phonetic and Phonological Study of Bhojpuri" पर शोध कार्य किया (पी.एच.डी. थीसिस, लन्दन विश्वविद्यालय, 1950 अप्रकाशित)। डॉ.डॉ॰ कैलाशचंद्र भाटिया का "ब्रजभाषा और खड़ीबोली का तुलनात्मक अध्ययन" सन् 1962 में प्रकाशित हुआ। 28 हरवंशलाल शर्मा ने इसकी प्रस्तावना, पृ. 1 में लिखा है - "डॉ.डॉ॰ कैलाश भाटिया द्वारा प्रस्तुत 'ब्रज भाषा और खड़ीबोली का तुलनात्मक अध्ययन' हिन्दी भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में एक स्तुत्य तथा नवीन प्रयास है। ब्रज भाषा और खड़ी बोली का तुलनात्मक भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन इस रूप में अभी तक प्रस्तुत नहीं हुआ था।"
 
== हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन ==
 
डॉ.डॉ॰ अनन्त चौधरी ने हिन्दी व्याकरण के संपूर्ण विकास की लगभग 300 वर्षों की अवधि को निम्नलिखित पाँच कालखण्डों में विभक्त किया है।
 
# आरम्भ काल - सन् 1676 - 1855 ई.
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डॉ.डॉ॰ '''बीणा गर्ग''' ने हिन्दी व्याकरण की विकास यात्रा को तीन मुख्य कालों में वर्गीकृत किया है31 -
 
* 1. '''आदिकाल '''
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== नोट (सन्दर्भ-संकेत) ==
 
1. कामता प्रसाद गुरुः "हिन्दी-व्याकरण," नागरीप्रचारिणी सभा, काशी; प्रथम संस्करण संवत् 1977 (1920 ई.); षष्ठ पुनर्मुद्रण, संवत् 2017 (1960 ई.)। डॉ.डॉ॰ वासुदेवनन्दन प्रसाद लिखते हैं- "पं. कामता प्रसाद गुरु का 'हिन्दी-व्याकरण' सन् 1920 ई. में प्रकाशित हुआ था। तब से इसी का, हिन्दी का एकमात्र आदर्श व्याकरण मानकर, सम्मान होता रहा है।" - आधुनिक हिन्दी-व्याकरण और रचना, भारती भवन, पटना 1977, पृ. 9, पं. 20-22
 
2. कुछ अन्य भारतीय देशी भाषाओं के (Vernaculars) आरम्भ-काल के व्याकरण उपलब्ध होते हैं। जैसे- भीष्माचार्य कृत 'पंचवार्तिक' नामक मराठी व्याकरण तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दी का है। लगभग सभी साहित्य समृद्ध द्रविड़ भाषाओं (तमिल, कन्नड, तेलुगु और मलयालम) के प्राचीन व्याकरण उपलब्ध हैं।
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13. 'भारतीय अनुशीलन', महामहोपाध्याय [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] के सम्मान में समर्पित, 23वाँ हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली, 1933, विभाग 4, अर्वाचीन काल, पृ. 30-36.
 
14. "Indian and Iranian Studies", डॉ.डॉ॰ ग्रियर्सन के पचासीवें जन्म दिवस 7 जनवरी 1936 पर समर्पित, The school of Oriental studies, लन्दन, पृ. 817-822.
 
15. देखें फुटनोट 3 का सन्दर्भ।
 
16. "हिन्दी के तीन प्रारंभिक व्याकरण", निर्देशक - डॉ.डॉ॰ उदयनारायण तिवारी, अनुवादक-मैथ्यु वेच्चुर, St. Paul Publications, इलाहाबाद, 1976; कुल 176 पृष्ठ।
 
17. पुनर्मुद्रण: Firma K. L. Mukhopadhyaya, Calcutta, 1963. Edited with notes, biographical sketch and bibliography of writings on Lebedeff by Mahadev Prasad Saha; Foreword by Prof. Suniti Kumar Chatterji; कुल पृष्ठ 40+118. इस संस्करण की एक प्रति डेक्कन कॉलेज, पुणे में उपलब्ध है।
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19. वही, पृ. 6.
 
20. डॉ.डॉ॰ पंजाबराव रामराव जाधव: "हिन्दी भाषा और साहित्य के अध्ययन में ईसाई मिशनरियों का योगदान", पी.एच.डी. थीसिस, पुणे विश्वविद्यालय; प्रकाशक - कर्मवीर प्रकाशन, 22 अम्बिका हौसिंग सोसायटी, सेनापति बापट पथ, पुणे - 411016; प्रथम संस्करण 1973 ई.।
 
21. भूमिका, पृ. 6.
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30. "हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन : एक दृष्टि", पृ.46 ; प्रकाशन विवरण हेतु देखें सन्दर्भ 31.
 
31. "हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन : एक दृष्टि", पृ.48-49। प्रकाशन विवरण इस प्रकार है - " समन्वय (क्षेत्रीय साहित्य सन्दर्भ)" (1996) - सं० उमाशंकर मिश्र; प्रकाशक - युवा साहित्य मंडल, 68, तुराबनगर, गाजियाबाद; 392 + 405 + 59 पृष्ठ। इसमें डॉ.डॉ॰ बीणा गर्ग का लेख "हिन्दी व्याकरण का काल विभाजन : एक दृष्टि", पृ.46-50.
 
== सन्दर्भ ==