"हैदर अली": अवतरणों में अंतर

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18 वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास में हैदर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अपनी प्रतिभा तथा योग्यता से वह विशाल साम्राज्य का मालिक बन बैठा। वह एक कुशल योद्ध सफल सेनानायक एवं चतुरशासक था। उसके व्यक्तिव्त में नेतृत्व की अदभुद क्षमता थी। वह विकट परिस्थितियों में भी घबरानेवाला व्यक्ति नहीं था। अपनी प्रतिभा के बल पर वह क साधारण सैनिक से मैसूर का सेनापति एवं अंत में सम्राट बन बैठा। वह 18वीं शताब्दी में भारत का एक सर्वाधिक सुयोग्य नेता था।
कुछ यूरोपीय इतिहासकारों ने उसकी काफी निन्दा की है किन्तु निरक्षर होते हुए भी हैदर की बुद्धिमत्ता दुरदर्शिता और प्रशासनिक कुशलता अद्वितीय थी। धार्मिक सहिष्णुता एवं निर्भकता उसका सबसे बड़ा गुण था। उसने उसने अपनी प्रजा को पूर्ण रुप से वार्षिक स्वतंत्रता की घोषणा की अनेक ब्राहमणों को भी उन्होंने मंगोल पद पर नियुक्त किया। वह अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध था। उसने प्रजा की भालाई के लिए कल्याणकारी कार्य किये। इसी कारण आज भी उसे मैसूर में अक आदर्श शासक के रुप में याद किया जाता है। वस्तुत: 18 वीं शताब्दी में वही पहला राजनीतिज्ञ था जिसने अंग्रेजों को देश से निष्काषित करने का संकल्प किया उसकी मृत्यु से कम्पनी राज्य का बहुत बड़ा खतरा टल गया।
उसमे अनेक गुण विद्धमान थे। इतिहासकार वावरिंग के शब्दों में हैदर में क ही समय कई विषयों पर एक साथ ध्यान देने का अदभूत गुण था और उसका ध्यानाकर्षण भंग नहीं होता था निविर्वाद रुप से भारत के योग्य शासकों में उनका स्थान प्रमुख था। डॉ.डॉ॰ स्मिथ ने हैदर की खाफी आलोचना की है उनका यह कहना था कि हैर का न कोई धर्म था न आचरण और न तो उनमें दया थी जो सवर्था गलत है वास्तविकता यह थी कि मुस्लिम शासकों में वह सबसे अधिक सहिष्णु था बावरिंग ने ठीक ही कहा है वह मौलिक तथा दिलेर सेना था जो रणकौशल में चतुर सुझ का तेज इल्स से भरपूर और पराजय में कभी घबराने वाली व्यक्ति नहीं था।
वास्तव में हैदर एक महान व्यक्ति था उसने अपनी योग्यता के बल पर मैसूर को क शक्तिशाली राज्य के रुप परिणत कर दिया उसने अंग्रेजों को भारत से निकालने का संकल्प किया। अगर अन्य भारतीय नरेशों ने उनका साथ दिया होता तो भारतीय इतिहास की धारा ही दूसरी होती।