"वृक्षायुर्वेद": अवतरणों में अंतर

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'''वृक्षायुर्वेद''' एकवनस्पति [[संस्कृत]]को ग्रन्थनिरामय रखने की एक पद्धति है जिसमें वृक्षों के स्वास्थ्यपूर्ण विकास एवं [[पर्यावरण]] का चिन्तन है। एवं वृक्षायुर्वेद परम्परा में अनेक ग्रन्थ थे परन्तु वर्तमान समय में ग्रन्थों का अभाव दृष्टिगत होता हे I इसी वृक्षायुर्वेद की सुरक्षापरम्परा में वृक्षायुर्वेद नाम से समन्धितएक चिन्तनग्रन्थ है।भी यहहे जो [[सुरपाल]] की रचना मानी जाती है जिनकेवृक्षायुर्वेद बारेविषय के तथ्य संस्कृत साहित्य में बहुतउपलब्ध कमहे जिस से प्राचीन वृक्षायुर्वेद विद्या के बारे ज्ञात है।होता हे I
 
सन् १९९६ में डॉ वाय एल नेने (एशियन एग्रो-हिस्ट्री फाउन्डेशन, भारत) ने [[यूके]] के बोल्डियन पुस्तकालय ([[आक्सफोर्ड]]) से इसकी [[पाण्डुलिपि]] प्राप्त की। डॉ नलिनी साधले ने इसकाउस्मानिया [[अनुवाद]] अंग्रेजीविश्वविद्यालय में (VRIKSHAYURVED THE PLANT SCIENCE OF LIFE ) शीर्षक से इसी पाण्डुलिपि पर शोध कार्य किया।
 
वृक्षायुर्वेद की पाण्दुलिपि [[देवनागरी]] के प्राचीन रूप वाली लिपि में लिखी गयी है। ६० पृष्ठों में ३२५ परस्पर सुगठित श्लोक हैं जिनमें अन्य बातों के अलावा १७० पौधों की विशेषताएँ दी गयीं हैं। इसमें [[बीज]] खरीदने, उनका संरक्षण, उनका संस्कार (ट्रीटमेन्ट) करने, रोपने के लिये गड्ढ़ा खोदने, भूमि का चुनाव, [[सिंचाई|सींचने]] की विधियाँ, खाद एवं पोषण, पौधों के [[रोग]], आन्तरिक एवं वाह्य रोगों से पौधों की सुरक्षा, चिकित्सा, बाग का विन्यास (ले-आउट) आदि का वर्नन है। इस प्रकार यह वृक्षों के जीवन से सम्बन्धित सभी मुद्दों पर ज्ञान का भण्डार है।