"गुरु ग्रन्थ साहिब": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
सिखों का पवित्र धर्मग्रंथ जिसे उनके पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन्‌ 1604 ई. में संगृहीत कराया था और जिसे सिख धर्मानुयायीमतानुयायी 'गुरूग्रंथ साहिब जी' भी कहते एवं गुरुवत्‌ मानकर सम्मानित किया करते हैं।
[[चित्र:Map birth place of Writers of Guru Granth Sahib.jpg|thumbnail|left|नक़्शे में गुरू ग्रन्थ साहिब के विभिन्न बानीकारों के जन्म स्थान दर्शाए गए हैं।]]
'आदिग्रंथ' के अंतर्गत सिखों के प्रथम पाँच गुरुओं के अतिरिक्त उनके नवें गुरु और 14 'भगतों' की बानियाँ आती हैं। ऐसा कोई संग्रह संभवत: [[गुरु नानकदेव]] के समय से ही तैयार किया जाने लगा था और गुरु अमरदास के पुत्र मोहन के यहाँ प्रथम चार गुरुओं के पत्रादि सुरक्षित भी रहे, जिन्हें पाँचवें गुरु ने उनसे लेकर पुन: क्रमबद्ध किया तथा उनमें अपनी ओर कुछ 'भगतों' की भी बानियाँ सम्मिलित करके सबको भाई गुरुदास द्वारा [[गुरुमुखी]] में लिपिबद्ध करा दिया। [[भाई बन्नों]] ने फिर उसी की प्रतिलिपि कर उसमें कतिपय अन्य लोगों की भी रचनाएँ मिला देनी चाहीं जो पीछे स्वीकृत न कतिपय अन्य लोगों की भी रचनाएँ गोविंदसिंह ने उसका एक तीसरा 'बीड़' (संस्करण) तैयार कराया जिसमें, नवम गुरु की कृतियों के साथ-साथ, स्वयं उनके भी एक '[[श्लोक|सलोक]]' को स्थान दिया गया। उसका यही रूप आज भी वर्तमान समझा जाता है। इसकी केवल एकाध अंतिम रचनाओं के विषय में ही यह कहना कठिन है कि वे कब और किस प्रकार जोड़ दी गई।