"उस्मानी साम्राज्य": अवतरणों में अंतर
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'''उस्मानी साम्राज्य''' (१२९९ - १९२३) (या '''
उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह [[एशिया]], [[यूरोप]] तथा उत्तरी [[
इसने १४५३ में
== इतिहास ==
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==== विस्तार और चरमोत्कर्ष (१४५३-१५६६)====
[[File:Moldovita murals 2010 41.jpg|thumb|left|कॉन्स्टेंटिनोपल के सामने उस्मानी सेना, १४५३, मोल्दोविता मठ]]
मुराद द्वितीय के बेटे महमद द्वितीय ने राज्य और सेना का पुनर्गठन किया और २९ मई १४५३ को कॉन्स्टेंटिनोपल जीत लिया। महमद ने रूढ़िवादी चर्च की स्वायत्तता बनाये रखी । बदले में चर्च ने उस्मानी प्रभुत्ता स्वीकार कर ली। चूँकि बाद के बैजेन्टाइन साम्राज्य और पश्चिमी यूरोप के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे इसलिए
पन्द्रहवीं और सोलवी शताब्दी में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार हुआ। उस दौरान कई प्रतिबद्ध और प्रभावी सुल्तानों के शासन में साम्राज्य खूब फला फूला। यूरोप और एशिया के बीच के व्यापारिक
सुल्तान सलीम प्रथम (१५१२ - १५२०) ने पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर चल्द्रान की लड़ाई में
[[File:1526 - Battle of Mohács.jpg|thumb|180px|मोहैच का युद्ध, १५२६]]
[[शानदार सुलेमान]] (१५१२-१५६६) ने १५२१ में बेलग्रेड पर
फ्रांस और उस्मानी साम्राज्य हैब्सबर्ग के शासन के विरोध में संगठित हुए और पक्के सहयोगी बन गए। फ्रांसिसियो ने १५४३ में नीस पर और १५५३ में कोर्सिका पर विजय प्राप्त की। ये जीत फ्रांसिसियो और तुर्को के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी जिसमे फ्रांसिसी राजा फ्रांसिस प्रथम और सुलेमान की सेनायों ने हिस्सा लिया था और जिसकी अगुवाई उस्मानी नौसेनाध्यक्षों बर्बरोस्सा हय्रेद्दीन पाशा और तुर्गुत रेइस ने की थी। १५४३ में नीस पर कब्जे से एक महीने पहले फ्रांसिसियो ने उस्मानियो को सेना की एक टुकड़ी दे कर एस्तेर्गोम पर विजय प्राप्त करने में सहायता की थी। १५४३ के बाद भी जब तुर्कियों का विजयाभियान जारी रहा तो आखिरकार १५४७ में हैब्सबर्ग के शासक फेर्दिनंद ने हंगरी का उस्मानी साम्राज्य में आधिकारिक रूप से विलय स्वीकार कर लिया।
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==इन्हें भी देखें==
*[[मंगोल साम्राज्य]]
*[[
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