"अमर सिंह प्रथम": अवतरणों में अंतर

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'''राणा अमर सिंह''' [[मेवाड]], [[राजस्थान]] के [[शिशोदिया राजवंश]] के शासक थे। इनके पिता [[महाराणा प्रताप]] थे तथा [[महाराणा उदयसिंह]] इनके दादा थे । राणा अमर सिंह भी महाराणा प्रताप जैसे वीर थे ओर इन्होंने मुग़ल से 18 बार युद्ध लड़ा । जहांगीर ने मेवाड़ में प्रजा को मारना ओर बलात्कार करना सुरु कर दिया था ओर बहुत सारे लोगों को बंदी भी बना दिया इस करण राणा अमर सिंह आपने अंतिम समय में जहांगीर से संधि करनी पड़ी थी । राणा अमर सिंह प्रजा भक्त थे । इनको ग़ुलामी में रहना अच्छा नहीं लगा फिर इन्होंने आपना राज्य आपने पुत्र को दे कर ख़ुद एक कुटिया में रहने लग गए <ref>{{cite book| last=Sharma|first=Sri Ram|title=Maharana Raj Singh and his Times| year=1971| isbn=8120823982| page=14}}</ref>
 
'''राणा अमरसिंह के बारे में कुछ तथ्या'''
 
* महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई के पुत्र
* जन्म - इन महाराणा का जन्म 16 मार्च, 1559 ई. को मचीन्द (राजसमन्द) में हुआ
* ननिहाल - बिजौलिया
* नाना जी - राव माम्रख/राम रख पंवार
* महाराणा अमरसिंह गुहिल वंश के 55वें व सिसोदिया वंश के 13वें शासक बने
 
"इतिहास में स्थान"
* महाराणा अमरसिंह के संघर्ष, बलिदान, वीरता, साहस के साथ न्याय नहीं हुआ | इनके बारे में सिर्फ एक बात मशहूर है कि इन्होंने मुगलों से सन्धि की |
बेशक महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से सन्धि की, लेकिन 1615 ई. में | जबकि उन्होंने राज्यभार 1597 ई. में संभाला था |
बीच के इन 18 वर्षों में महाराणा अमरसिंह ने जो भीषण संघर्ष किया, वो आज महज़ कुछ ग्रन्थों तक ही सीमित है | इन ग्रन्थों से कोई बात यदि बाहर निकली, तो वो है मुगलों से सन्धि की |
निस्संदेह महाराणा अमरसिंह महान शासकों में से एक थे |
* महाराणा अमरसिंह स्वभाव से बड़े दयालु थे व प्रजा के हित को सर्वोपरि मानते थे
"महाराणा अमरसिंह का कुंवरपदे काल (राज्याभिषेक से पूर्व)"
* इनका संघर्ष 1567 ई. से ही शुरु हुआ, जब चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ व इन्हें चित्तौड़ छोड़ना पड़ा
 
अप्रैल, 1573 ई.
* महाराणा प्रताप को सन्धि के लिए मनाने जब मानसिंह उदयपुर आया, तब महाराणा प्रताप ने मानसिंह से बातचीत हेतु अपने 14 वर्षीय पुत्र कुंवर अमरसिंह को भेजा था
सितम्बर-अक्टूबर, 1573 ई.
* महाराणा प्रताप को सन्धि हेतु मनाने के लिए भगवानदास गोगुन्दा आया
अबुल फजल ने सन्धि प्रयासों की असफलता को छुपाने के लिए मनगढंत कहानी लिखी
अबुल फजल लिखता है "राजा भगवानदास जब राणा को मनाने गोगुन्दा पहुंचा, तो राणा ने उसकी बड़ी खातिरदारी की | राणा का दिल उजाड़ था, इसलिए उसने खुद ना आकर अपने बेटे अमरा (अमरसिंह) को राजा भगवानदास के साथ शाही दरबार में भेजा | कुछ वक्त बाद शहंशाह ने अमरा को फिर से मेवाड़ भेज दिया"
अबुल फजल की इस बात को गलत साबित करने वाला खुद जहांगीर था
तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "राणा अमरसिंह ने कभी किसी बादशाह को नहीं देखा"
 
1576 ई.
* हल्दीघाटी युद्ध के समय इनकी आयु 17 वर्ष थी, पर इन्हें युद्ध से दूर रखा गया
जेम्स विन्सेट लिखता है "हल्दीघाटी युद्ध में रुपा नाम का एक भील युद्ध की शुरुआत में ही भाग गया था, जिसे कुंवर अमरसिंह ने कुछ वर्षों बाद हल्दीघाटी युद्ध में भाग जाने के प्रतिशोध स्वरुप मार डाला"
 
* 1576 ई. के बाद जब महाराणा प्रताप ने जंगलों में जीवन बिताया, तब कुंवर अमरसिंह ने भी इस संघर्षपूर्ण जीवन को स्वीकार किया
 
1580 ई.
* कुंवर अमरसिंह ने अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना को पराजित किया व उसकी बेगमों को बन्दी बनाकर महाराणा प्रताप के समक्ष प्रस्तुत किया
महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को जोरदार फटकार लगाई व रहीम की बेगमों को सही सलामत रहीम तक पहुंचाने का आदेश दिया
 
1582 ई.
"दिवेर का युद्ध"
* महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया
* कुंवर अमरसिंह ने मुगलों के सेनापति सुल्तान खान को घोड़े से गिराकर अपने भाले से उसे कवच समेत कत्ल किया
(जैसा कि पेन्टिंग में दिखाया गया है)
 
1582 ई. - 1588 ई.
"मुगल थाने उठाने में महाराणा प्रताप का सहयोग"
* दिवेर विजय के बाद महाराणा प्रताप ने जो 36 मुगल थाने उखाड़ फेंके थे, उनमें कुंवर अमरसिंह ही सेनापति थे
* एक दिन तो कुंवर अमरसिंह ने गज़ब की तेजी दिखाते हुए 5 मुगल थाने उखाड़ फेंके
* कुंवर अमरसिंह ने मोही, मदारिया, आमेट, देवगढ़ वगैरह मुगल थानों पर हमले किए व विजयी हुए
 
1587 ई.
"आमेर पर हमला"
* महाराणा प्रताप के आदेश से कुंवर अमरसिंह व भामाशाह ने आमेर के समृद्ध नगर मालपुरा को लूटकर तहस-नहस कर दिया
* संभवत: इसी वर्ष कुंवर अमरसिंह ने गुजरात के किसी शाही प्रदेश पर हमला किया व 70 हजार रु. दण्डस्वरुप (लूटकर) वसूल किए
 
1597 ई.
19 जनवरी
* महाराणा प्रताप का देहान्त
* चावण्ड में कुंवर अमरसिंह का राज्याभिषेक हुआ
कुंवर अमरसिंह बन गए महाराणा अमरसिंह
राज्याभिषेक के समय महाराणा की आयु 37 वर्ष थी
 
"मेवाड़ की स्थिति"
* पिछले 9 वर्षों में मेवाड़-मुगलों के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ | चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ पर महाराणा का अधिकार था | 1578 ई. में एक समय एेसा आया जब मेवाड़ी फौज 500 ही रह गई थी, लेकिन एेसी परिस्थितियों में भामाशाह की मदद से मेवाड़ी फौज में वृद्धि हुई | 9 वर्षों (1588-1597) तक युद्ध नहीं होने से ये फौज 1597 ई. में तकरीबन 5000 हो गई थी |
* इसी वर्ष आमेर के मानसिंह कछवाहा के 2 पुत्रों ठाकुर हिम्मत सिंह व ठाकुर दुर्जन सिंह की मृत्यु हुई
* महाराणा अमरसिंह ने राज्य संभालते ही फौरन मेवाड़ के बाहर तैनात मुगल थानों पर हमले व लूटमार करना शुरु कर दिया
* इसी वर्ष महाराणा अमरसिंह ने एक शाही थाने पर हमला किया, जिसमें मुगलों की तरफ से लड़ते हुए देवलिया रावत भानु सिंह मारे गए
भानु सिंह ईडर के राय नारायणदास जी के दामाद थे
 
1598 ई.
* अकबर अपनी राजधानी लाहौर से फिर आगरा लाया
(गौर करने वाली बात है कि जब 1585 ई. में अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाई, तो मेवाड़ पर हमले करना बन्द कर दिया | 1598 ई. में आगरा को राजधानी बनाई और एक दफ़ा फिर मेवाड़ को फतह करने का इरादा किया)
 
1599 ई.
* इस वर्ष अकबर के बेटे शहजादे मुराद की 29 वर्ष की आयु में नशे की लत से मृत्यु हुई
* इसी वर्ष महाराणा प्रताप से लगातार युद्ध करने वाले शाहबाज खान की बीमारी के चलते अजमेर में मृत्यु हुई
* इसी वर्ष अकबर ने मानसिंह कछवाहा के बेटे जगतसिंह को बंगाल अभियान में भेजा, जहां जगतसिंह की मृत्यु हुई
जगतसिंह के पुत्र महासिंह हुए | महासिंह का विवाह मेवाड़ के शक्तिसिंह जी की पुत्री रानी दमियन्ती बाई से हुआ |
 
16 सितम्बर, 1599 ई.
* महाराणा अमरसिंह द्वारा की गई मुगल विरोधी कार्यवाहियों के बाद अकबर ने अपने बेटे सलीम (जहांगीर) व आमेर के मानसिंह कछवाहा के नेतृत्व में शाही फौज मेवाड़ भेजी
शाह कुली महरम समेत कई सिपहसालारों ने शाही फौज के साथ मेवाड़ कूच किया
* मानसिंह ने चित्तौड़, मांडल, मांडलगढ़, बागोर, कोशीथल, उँठाळा, मोही, मदारिया, रामपुरा समेत मेवाड़ के कई स्थानों पर मुगल थाने तैनात किए
मानसिंह ने उँठाळा दुर्ग में कायम खान को तैनात किया
"बागोर पर महाराणा का हमला"
* मानसिंह ने बागोर के शाही थाने पर सुल्तान खान खोरी को तैनात किया था
* महाराणा अमरसिंह ने बागोर के शाही थाने पर हमला किया और सुल्तान खान खोरी को स्वयं अपने हाथों से कत्ल किया
"रामपुरा पर महाराणा का हमला"
* महाराणा अमरसिंह ने रामपुरा शाही थाने पर अचानक हमला किया
रामपुरा शाही थाने का मुख्तार भाग निकला और महाराणा ने रामपुरा पर कब्जा किया
* राणा पूंजा भील के पुत्र ने महाराणा अमरसिंह का साथ दिया
 
1599 ई.
* इस वर्ष वीर जयमल राठौड़ के पुत्र माधोदास मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
 
1600 ई.
* जहांगीर अजमेर में ही रुका और इसी समय उसको नशे की लत लग गई और उसने मेवाड़ में मानसिंह का साथ नहीं दिया | इस कारण अकबर को बड़ा क्रोध आया और उसने अपने मन में जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो को अगला मुगल बादशाह चुनने का विचार किया |
इसी वर्ष जहांगीर ने अकबर के खिलाफ बगावत कर दी और खुद को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया लेकिन अकबर ने जैसे-तैसे जहांगीर को समझाकर विद्रोह को शान्त किया |
* इसी वर्ष महाराणा प्रताप काे धन देकर सहायता करने वाले व दिवेर युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले दानवीर भामाशाह का 52 वर्ष की आयु में देहान्त हुआ
महाराणा अमरसिंह ने भामाशाह के पुत्र जीवाशाह को मेवाड़ का प्रधान घोषित किया
* इसी वर्ष महाराणा प्रताप के शुभचिन्तक व महाराणा प्रताप की माता जयवन्ता बाई की बहन के पुत्र बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ का देहान्त हुआ
इन्होंने "बेलि किसन रुक्मिणी री" की रचना की थी
* इसी वर्ष महाराणा प्रताप का साथ देने वाले जवास के चन्द्रभान सिंह चौहान का देहान्त हुआ
जसवन्त सिंह चौहान जवास के शासक बने
* मेवाड़ में कई जगह मुगल थाने तैनात हो चुके थे
महाराणा अमरसिंह ने मांडल वगैरह शाही थाने तहस-नहस करते हुए मुगलों को आमेर के मालपुरे तक खदेड़ दिया
मानसिंह द्वारा मेवाड़ में मुगल थाने लगाने के कारण महाराणा अमरसिंह ने मानसिंह को करारा जवाब देते हुए एक दफ़ा फिर आमेर के समृद्ध नगर मालपुरा को लूट लिया
(इससे पहले भी कुंवर अमरसिंह ने 1587 ई. में मालपुरा को लूटा था)
* अबुल फजल लिखता है "अजमेर में नशे से फुर्सत निकालकर शहजादे सलीम ने उदयपुर पर हमला किया | राणा ने पहाड़ियों के दूसरी तरफ से निकलकर जबर्दस्त उत्पात मचाना शुरु कर दिया | राणा ने मालपुरे को लूट लिया और कई इलाकों में फसलों को तहस-नहस कर दिया"
* जहांगीर ने मालपुरे की तरफ मानसिंह के भाई माधोसिंह को भेजा
(माधोसिंह ने हल्दीघाटी युद्ध में भी भाग लिया था)
* अबुल फजल लिखता है "शहजादे सलीम ने माधोसिंह को फौजी टुकड़ी के साथ राणा को काबू में करने भेजा | राणा पहाड़ियों में चला गया, पर रात के वक्त उसने शाही फौज पर अचानक हमला कर दिया"
* महाराणा अमरसिंह का मुकाबला रेज़ा कुली, लाला बेग, मुबारिज़ बेग, अालिफ खान से हुआ
इसी समय महाराणा को खबर मिली की उनका ध्यान मालपुरे से हटाने के लिए अकबर ने मिर्जा शाहरुख के नेतृत्व में एक फौज मेवाड़ भेज दी
मालपुरे की लड़ाई लड़ते हुए महाराणा अमरसिंह शाही खेमों में तबाही मचाते हुए उदयपुर की तरफ लौटे
* महाराणा ने मेवाड़ी फौज के साथ ऊँठाळा दुर्ग की तरफ कूच किया
 
"ऊँठाळे का युद्ध"
1600 ई.
* उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील में स्थित इस दुर्ग पर मुगलों का कब्जा था
* ये युद्ध 1605 ई. में जहांगीर के समय होना बताया जाता है
लेकिन कविराज श्यामलदास समेत कुछ विद्वानों द्वारा ये युद्ध 1600 ई. में अकबर के समय होना बताया जाता है
1600 ई. वाली तारीख ज्यादा सही लगती है
* अकबर का सिपहसालार कायम खान ऊँठाळे दुर्ग में तैनात था
* इस युद्ध को मेवाड़ के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है
इसका सबसे अहम कारण था चुण्डावतों व शक्तावतों में हरावल में रहने की होड़
मेवाड़ की हरावल (सेना की अग्रिम पंक्ति) में रहने का अधिकार चुण्डावतों को प्राप्त था
चुण्डावतों की तरफ से जैतसिंह व शक्तावतों की तरफ से बल्लु सिंह महाराणा अमरसिंह के पास पहुंचे
महाराणा ने इस समस्या का एक हल निकाला
महाराणा ने कहा कि आप दोनों में से जो भी ऊँठाळे दुर्ग में सबसे पहले प्रवेश करेगा, वही हरावल में रहने का अधिकारी होगा
* महाराणा अमरसिंह ने खुद इस विनाशकारी युद्ध का नेतृत्व किया
* मेवाड़ी सेना ने ऊँठाळे दुर्ग को घेर लिया
* दुर्ग में प्रवेश करने के लिए बल्लु शक्तावत ने दुर्ग के द्वार से प्रवेश करना चाहा
बल्लु शक्तावत ने हाथी को आदेश दिया कि द्वार को टक्कर मारे पर लोहे की कीलें होने से हाथी ने द्वार को टक्कर नहीं मारी
बल्लु शक्तावत द्वार की कीलों को पकड़ कर खड़े हो गए और हाथी को कहा कि टक्कर मारे
हाथी ने बल्लु शक्तावत के टक्कर मारी जिससे बल्लु शक्तावत नुकीली कीलों से वीरगति को प्राप्त हुए और द्वार भी खुल गया
* कविराज श्यामलदास के अनुसार इसमें जीत चुण्डावतों की हुई | जैतसिंह चुण्डावत ने अपना सर काटकर दुर्ग के अन्दर फेंक दिया |
इस तरह हरावल का नेतृत्व चुण्डावतों के अधिकार में ही रहा
* महाराणा अमरसिंह ने स्वयं मुगल सेनानायक कायम खान को मारा और मेवाड़ी वीरों ने ऊँठाळे दुर्ग पर विजय प्राप्त की
 
* महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह जी के 17 पुत्र थे, जिनमें से 9-10 पुत्र इसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए
शक्तिसिंह जी के कुछ पुत्रों के नाम जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया -
* रावत अचलदास
* कुंवर मालदेव सिंह
* ठाकुर जोधसिंह (वीरगति)
* कुंवर बल्लु सिंह (वीरगति)
* कुंवर दलपत सिंह (मीर रुकुन्दी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए)
* कुंवर भूपत सिंह (ये भी मीर रुकुन्दी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए)
* कुंवर सुल्तान सिंह (वीरगति)
* कुंवर मंडन सिंह (वीरगति)
* कुंवर जगन्नाथ सिंह (वीरगति)
* महाराज भाण (वीरगति) - ये शक्तिसिंह जी के दूसरे पुत्र थे | महाराणा प्रताप ने इनको भीण्डर की जागीर प्रदान की थी |
(शक्तिसिंह जी व उनके वंशजों ने मेवाड़ के लिए अनगिनत बलिदान दिए, जिनका विस्तृत हाल सगतरासो ग्रन्थ में लिखा है)
 
* अन्य मेवाड़ी योद्धा, जो इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए -
वाधा
अमरा (वाधा के पुत्र)
बैरीशाल
खान देवड़ा
आहीर दामोदर
तेजसिंह खँगारोत
 
"महाराणा अमरसिंह का परिवार"
* महाराणा अमरसिंह के पुत्र-पुत्रियों की अधिक जानकारी नहीं मिलती
इस समय मेवाड़ की महारानी साहबकंवर थीं
महाराणा प्रताप की अनुमति से महाराणा अमरसिंह की एक पुत्री की सगाई सिरोही के राव सुरताण से तय हुई थी
महाराणा अमरसिंह के पहले पुत्र कुंवर कर्ण सिंह हुए, जो आगे चलकर मेवाड़ के महाराणा बने | कुंवर कर्ण सिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 ई. को हुआ |
दूसरे पुत्र कुंवर सूरजमल हुए | 1629 ई. में कुंवर सूरजमल शाहपुरा के पहले राजाधिराज बने | इनके वंशज गांगवास, सरवाणिया, बड़लियास, नरेला में बसते हैं |
 
1600 ई.
* अकबर द्वारा मेवाड़ भेजे गए मिर्जा शाहरुख ने मेवाड़ में कई जगह मुगल थाने तैनात किए
* महाराणा अमरसिंह ने कुछ समय पहले ही मांडल के शाही थाने पर हमला कर विजय प्राप्त की थी
* मिर्जा शाहरुख ने मांडल में आमेर के जगन्नाथ कछवाहा को शाही फौज के साथ तैनात किया
* मिर्जा शाहरुख बांसवाड़ा पहुंचा
बांसवाड़ा में इस समय रावल उग्रसेन का शासन था
(महाराणा प्रताप के आदेश से 1590 ई. में बांसवाड़ा के रावल मानसिंह को हटाकर जयमल राठौड़ के पौत्र रावल उग्रसेन को बांसवाड़ा का शासक बनाया गया था)
बांसवाड़ा में हुए इस युद्ध में रावल उग्रसेन पराजित हुए और बांसवाड़ा पर मिर्जा शाहरुख ने कब्जा कर लिया
रावल उग्रसेन ने मालवा को लूट लिया
मिर्जा शाहरुख मालवा पहुंचा, तो रावल उग्रसेन ने बांसवाड़ा के रावल मानसिंह को मारकर बांसवाड़ा पर कब्जा कर लिया
 
1601 ई.
* अकबर की असीरगढ़ विजय
ये अकबर की अन्तिम विजय थी
* इसी वर्ष बंगाल में अफगानों ने बगावत कर दी, जिसे कुचलने मानसिंह मेवाड़ से बंगाल रवाना हुआ |
* इसी वर्ष सलीम (जहांगीर) भी मेवाड़ से चला गया
अबुल फजल लिखता है "अपने काम को पूरा किये बगैर ही शहजादे सलीम मेवाड़ से रुखसत हुए"
 
12 अगस्त, 1602 ई.
* अबुल फजल दक्षिण से आगरा लौट रहा था | सलीम नहीं चाहता था कि अबुल फजल बादशाह अकबर तक पहुंच सके |
सलीम (जहांगीर) ने ग्वालियर के समीप वीर सिंह बुन्देला की मदद से अकबर के नवरत्नों में से एक व अकबरनामा के लेखक अबुल फजल की हत्या करवा दी
 
1602 ई.
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "वीरसिंह बुन्देला ने मुझे तोहफे में शैख अबुल फजल का सर दिया"
 
1603 ई.
"अकबर का महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध तीसरा व अन्तिम सैनिक अभियान"
* महाराणा अमरसिंह ने अपने दाजीराज के पदचिन्हों पर चलते हुए कई शाही थानों पर हमले कर फतह हासिल की
* हालांकि इस समय आधे से ज्यादा मेवाड़ अकबर के कब्जे में था
* महाराणा अमरसिंह द्वारा लगातार शाही थानों पर हमलों की खबर अकबर के कानों में भी पड़ी
* अकबर ने सलीम (जहांगीर) के नेतृत्व में शाही फौज मेवाड़ भेजी
* आमेर के जगन्नाथ कछवाहा और माधोसिंह कछवाहा, रामपुरा के राव दुर्गा समेत कई सिपहसालारों ने मुगल फौज के साथ मेवाड़ कूच किया
(राव दुर्गा पहले कभी महाराणा उदयसिंह का सामन्त हुआ करता था)
* सलीम शाही फौज के साथ अजमेर में रुका
अजमेर से उसने मेवाड़ के खिलाफ छुटपुट कार्यवाही की, जो असफल हुई
* गोमती नदी में बाढ़ आने पर महाराणा अमरसिंह ने ठीक उसी स्थान पर एक कृत्रिम झील बनवाने का विचार किया, जहां आज राजसमन्द झील बनी हुई है | महाराणा अमरसिंह अपनी इस योजना को पूरा नहीं कर पाए, क्योंकि जब तक गोमती नदी का पानी उतरा, तब तक उनको मुगलों ने घेर लिया | महाराणा मुगलों से लड़ते हुए उदयपुर की तरफ आ गए |
* सलीम अजमेर में बहाने बनाने लग गया
सलीम ने अकबर को खत लिखा कि उसे मेवाड़ के खिलाफ जंग के लिए हथियार वगैरह बेहद कम मुहैया करवाए गए हैं
इस तरह मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास व पिछली बार मिली पराजय (1600 ई.) को ध्यान में रखते हुए सलीम ने अपने पिता के आदेशों का उल्लंघन किया और वह मेवाड़ अभियान छोड़कर प्रयाग चला गया
 
1604 ई.
* इस वर्ष जहांगीर की पत्नी ने आत्महत्या कर दी
* इसी वर्ष 8 अप्रैल को अकबर के बेटे दानियाल मिर्जा की 32 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई
* इसी वर्ष 29 अगस्त को अकबर की माता मरियम मकानी हमीदा बानो बेगम का 80 वर्ष की उम्र में इन्तकाल हुआ
* मांडल के शाही थाने का मुख्तार जगन्नाथ कछवाहा था
महाराणा अमरसिंह ने मांडल की तरफ कूच किया
जगन्नाथ कछवाहा मांडल का थाना किसी मुगल को सौंपकर आगरा की तरफ रवाना हुआ
महाराणा अमरसिंह ने मांडल के शाही थाने पर हमला कर विजय प्राप्त की
 
1605 ई.
27 अक्टूबर
* बीमारी के चलते मुगल बादशाह अकबर की 63 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई
* 1597 ई. में चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा सम्पूर्ण मेवाड़ महाराणा प्रताप के कब्जे में था | अकबर के साथ महाराणा अमरसिंह के 8 वर्षों तक चले संघर्ष में महाराणा सिर्फ उदयपुर समेत मेवाड़ के थोड़े-बहोत हिस्सों को ही बचा पाए | फलस्वरुप अकबर अपनी मृत्यु के समय भी सम्पूर्ण मेवाड़ पर अधिकार नहीं कर सका |
* 1688 ई. में राजाराम जाट ने अकबर की कब्र लूट ली व अकबर की अस्थियों को जलाकर खाक कर दिया
* अकबर का सबसे बड़ा बेटा सलीम मुगल बादशाह बना, जो जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ
 
हुमायूँ से लेकर औरंगजेब तक हर मुगल शहजादे ने बादशाह बनने के लिए अपने पिता का विरोध किया (अकबर को छोड़ कर)
* समय बदल चुका था..... मेवाड़ का राणा बदल चुका था..... मुगल बादशाह बदल चुका था..... पर मेवाड़ तब भी स्वाधीन था और आज भी स्वाधीनता के लिए हुंकार भर रहा था
वीरान.... बंजर..... जर्जर मेवाड़.... कंटीली झाड़ियाँ .... दूर-दूर तक फसलों का नामोनिशान नहीं....
इस दुर्दशा में भी मेवाड़ खड़ा था अपनी आन-बान-शान के साथ सर उठाकर
* मुगल बादशाह जहांगीर के लिए भी अपने विस्तृत साम्राज्य में मेवाड़ का स्वतन्त्र अस्तित्व असहनीय था
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "राणा अमरसिंह और उसके बाप-दादों ने अपने घमंड और पहाड़ी मकामों के भरोसे कभी किसी बादशाह की ताबेदारी नहीं की | यह मुआमिला कहीं मेरे समय में बाकी न रह जावे |"
* जहांगीर ने अपनी तख्तनशीनी के तुरन्त बाद सबसे पहला अभियान मेवाड़ फतह करने के लिए ही किया
जहांगीर ने अपने बेटे शहजादे परवेज को शाही फौज के साथ मेवाड़ भेजने का फैसला किया
 
नवम्बर, 1605 ई.
"जहांगीर का महाराणा अमरसिंह के खिलाफ पहला अभियान व मुगल फौज का मेवाड़ कूच करना"
> मेवाड़ पर एक बहुत बड़ा हमला करने से पहले मुगल पक्ष ने जो तैयारियां कीं, वे कुछ इस तरह हैं
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "मेरे बाप की मेवाड़ फतह करने की आरज़ू अधूरी रह गई थी | मुझे ख़याल आया कि क्यों न मेरे बेटे सुल्तान परवेज को मैं राणा के खिलाफ जंग करने भेज दूँ | राणा अमर हिन्दुस्तान का सबसे शैतानी ख़याल वाला काफिर था | मेरे बाप ने भी राणा के खिलाफ कई फौजें भेजी, पर कामयाबी नहीं मिली | मेरी तख्तनशीनी के जुलूस के मौके पर कई सिपहसालार, जमींदार और राजे-रजवाड़ों ने शिरकत की थी | मैंने उन सबको मेवाड़ फतह करने की इस बड़ी मुहिम पर भेज दिया | मैंने अपने बेटे शहजादे परवेज की कमान में 20,000 जंगी सवार मेवाड़ भेज दिए"
* शहजादे परवेज के साथ 20,000 घुड़सवारों ने मेवाड़ कूच किया
"मेवाड़ आने वाले मुगल फौज के नेतृत्वकर्ता व सिपहसालार"
* शहजादा परवेज - ये जहांगीर व उसकी पत्नी साहिब जमाल का बेटा था | इसने मुगल फौज का नेतृत्व किया | जहांगीर ने परवेज को एक खिलअत, एक रत्नजड़ित तलवार, एक रत्नजड़ित खंजर, 72000 रु. का हीरों का हार, ईराकी और तुर्कमानी घोड़े व कई प्रसिद्ध हाथी देकर मेवाड़ भेजा | जहांगीर लिखता है "मैंने परवेज को विदा करते वक्त उसको कहा कि अगर राणा खुद तुम्हारे पास आवे या अपने बड़े बेटे करण को भेजकर हमारा ताबेदार बनना चाहे, तो तुम उसकी बात मान लेना और उसके मुल्क को कोई नुकसान मत पहुंचाना"
* आसफ खान वज़ीर - इसे परवेज का सबसे खास सिपहसालार बनाया गया, जो जरुरत पड़ने पर परवेज को सलाह-मशवरा दिया करे | ये आसफ खान हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने वाला आसफ खान नहीं है, बल्कि ये शाहजहां का ससुर था | जहांगीर ने इसका पद बढ़ाकर इसे 2500 सवार के मनसब के स्थान पर 5000 सवार का मनसब दिया | जहांगीर ने आसफ खान का सम्मान करते हुए उसे रत्नजड़ित तलवार, एक घोड़ा और एक हाथी दिया |
* मुख्तार बेग - ये आसफ खान का चाचा था | इसे परवेज का दीवान बनाया गया |
* अब्दुर्ज्जाक मअमूरी बख्शी
* जफ़र बेग - इसे भी परवेज को सलाह-मशवरा देने के लिए खास सिपहसालार बना कर भेजा गया
* जगन्नाथ कछवाहा - ये मानसिंह का काका था, जिसने मेवाड़ के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया था | इसे 5000 का मनसब मिला | जहांगीर ने इसे एक खिलअत, एक रत्नजड़ित तलवार दी |
* माधोसिंह कछवाहा - जहांगीर ने इसे मुगल ध्वज सौंपा | इसे 3000 का मनसब मिला | जहांगीर ने इसे राजा मानसिंह के भाई का पुत्र बताया है, जबकि कविराज श्यामलदास के अनुसार ये मानसिंह का भाई था |
* महासिंह कछवाहा - ये आमेर के मानसिंह का पौत्र/जगतसिंह का पुत्र/मेवाड़ के शक्तिसिंह जी का दामाद था
* सगर/सागर सिंह सिसोदिया - ये मेवाड़ के जगमाल का छोटा भाई व महाराणा अमरसिंह का काका था | जहांगीर ने इसका नाम गलती से "राणा शकर" लिख दिया | "राणा" इसलिए लिखा गया क्योंकि अकबर ने सगर सिंह को "राणा" का खिताब दिया और चित्तौड़ की राजगद्दी पर बिठाने का वादा किया था, जो वो पूरा नहीं कर सका | जहांगीर लिखता है "एक वक्त पर मेरे बाप ने शहजादे खुसरो और राणा शकर की कमान में शाही फौज राणा अमरसिंह के खिलाफ भेजने का फैसला किया था, पर उससे पहले ही उनका (अकबर) इन्तकाल हो गया" | जहांगीर ने इसे रत्नजड़ित तलवार दी |
* रायसाल सिंह - जहांगीर ने इसे भी मुगल ध्वज सौंपा | इसे 3000 का मनसब मिला |
* मनोहर सिंह
* शैख अब्दुर्रहमान - ये अबुल फजल का बेटा था
* शैख रुकनुद्दीन पठान
* शेर खान - इसने उजबेगों से लड़ाई में अपना कंधा गंवाया | जहांगीर ने इसका मनसब 500 से बढ़ाकर 3500 कर दिया |
* ज़ाहिद खां - ये सादिक खां का बेटा था
* मुख्तार बेग
* कराखां तुर्कमान
* वज़ीर जमील
और 1000 अहदी
* इन सबको अपने-अपने लश्करों के साथ शहजादे परवेज के साथ कर दिया
* महाराणा अमरसिंह ने मुगल फौज के आने की खबर सुन अपने दाजीराज की नीति अपनाते हुए मेवाड़ को उजाड़ दिया, फसलें खत्म कर दीं ताकि मुगलों को रसद वगैरह न मिले, मेवाड़ की प्रजा को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया
 
नवम्बर, 1605 ई.
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "मैंने परवेज को मेवाड़ भेजने से पहले कहा कि अगर राणा खुद तुम्हारे पास आवे या अपने बड़े बेटे करण को भेजकर हमारा ताबेदार बनना चाहे, तो तुम उसकी बात मान लेना और उसके मुल्क को कोई नुकसान ना पहुंचाना"
* शहजादे परवेज के नेतृत्व में मुगल फौज मेवाड़ के करीब पहुंची, कि तभी उन्हें पता चला कि इस वक्त महाराणा अमरसिंह मांडल में हैं
* परवेज ने 20,000 घुड़सवारों के साथ मांडल की तरफ कूच किया
* महाराणा अमरसिंह की कुल फौज इस वक्त तकरीबन 4,000 थी, लेकिन मांडल में इस वक्त महाराणा केवल 500-700 मेवाड़ी वीरों के साथ थे, इसलिए महाराणा को मांडल का थाना छोड़कर जाना पड़ा और परवेज ने मांडल पर कब्जा किया
* जहांगीर लिखता है "मेरे बेटे परवेज ने मुझे पैगाम भेजा कि राणा मांडल का थाना छोड़कर चला गया है, मांडल अजमेर से 30-40 कोस दूर है | उम्मीद है कि ये खबर म
 
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