"सायण": अवतरणों में अंतर
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'''सायण''' या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) [[वेद|वेदों]] के सर्वमान्य [[भाष्य|भाष्यकर्ता]] थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड वेदभाष्य ही है। इनसे पहले किसी का लिखा, चारों वेदों का भाष्य नहीं मिलता। ये २४ वर्षों तक [[विजयनगर साम्राज्य]] के सेनापति एवं अमात्य
== जीवनी ==
सायण ने अपनी रचनाओं में अपने चरित्र के विषय में आवश्यक तथ्यों का निर्देश किया है। ये दक्षिण भारत के निवासी थे। इनके पिता का नाम था मायण और माता का श्रीमती। इनका गोत्र भारद्वाज था। कृष्ण [[यजुर्वेद]] की तैत्तिरीय शाखा के अनुयायी श्रोत्रिय थे। इनके अग्रज [[विजयनगर साम्राज्य]] के संस्थापक महाराज हरिहर के मुख्यमंत्री तथा आध्यात्मिक गुरु थे। उनका नाम था - [[माधवाचार्य]] जो अपने जीवन के अंतिम समय में [[
=== सायण के आश्रयदाता ===
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सायण का जीवन अग्रज माधव के द्वारा इतना प्रभावित था तथा उनके साथ घुलमिल गया था कि पंडितों को भी इन दोनों के पृथक् व्यक्तित्व में पर्याप्त संदेह है। इसका निराकरण प्रथमत: आवश्यक है। माधवाचार्य 14वीं शती में भारतीय विद्वज्जनों के शिखामणि थे। वे वेद, धर्मशास्त्र तथा मीमांसा के प्रकांड पंडित ही न थे, प्रत्युत वेदों के उद्धारक तथा वैदिक धर्म के प्रचारक के रूप में उनकी ख्याति आज भी धूमिल नहीं हुई है। उन्हीं के आध्यात्मिक उपदेश तथा राजनीतिक प्रेरणा का सुपरिणाम है कि महाराज हरिहर राय के रूप से विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। माधवाचार्य का इस प्रकार इस साम्राज्य की स्थापना में पूर्ण सहयोग था अत: वे राज्य कार्य के सुचारू संचालन के लिए प्रधानमंत्री के पद पर भी प्रतिष्ठित हुए। यह उन्हीं की प्रेरणाशक्ति थी कि इन दोनों सहोदर भूपालों ने वैदिक संस्कृति के पुनरुत्थान को अपने साम्राज्य स्थापन का चरम लक्ष्य बनाया और इस शुभ कार्य में वे सर्वथा सफल हुए। फलत: हम माधवाचार्य को 14वीं शती में दक्षिण भारत में जायमान वैदिक पुनर्जाग्रति का अग्रदूत मान सकते हैं। मीमांसा तथा धर्मशास्त्र के प्रचुर प्रसार के निमित्त माधव ने अनेक मौलिक ग्रंथों का प्रणयन किया-
*(1) पराशरमाधव (पराशर स्मृति की व्याख्या),
*(2) व्यवहारमाधव,
*(3) कालमाधव (तीनों ही धर्मशास्त्र से संबद्ध),
*(4) जीवन्मुक्तिविवेक (वेदांत),
*(5) पंचदशी (वेदांत)
*(6) जैमिनीय न्यायमाला
*(7)
अंतिम ग्रंथ की रचना के विषय में आलोचक संदेहशील भले हों, परंतु पूर्वनिबद्ध छहों ग्रंथ माधवाचार्य की असंदिग्ध रचनाएँ हैं। अनेक वर्षों तक मंत्री का अधिकार संपन्न कर और साम्राज्य को अभीष्ट सिद्धि की ओर अग्रसर कर माधवाचार्य ने संन्यास ले लिया और श्रृंगेरी के माननीय पीठ पर आसीन हुए। इनका इस आश्रम का नाम था - विद्यारण्य । इस समय भी इन्होंने पीठ को गतिशील बनाया तथा [[पंचदशी]] नामक ग्रंथ का प्रणयन किया जो [[अद्वैत वेदांत]] के तत्वों के परिज्ञान के लिए नितांत लोकप्रिय ग्रंथ है। विजयनगर सम्राट की सभा में अमात्य माधव, माधवाचार्य से नितांत पृथक् व्यक्ति थे जिन्होंने [[सूतसंहिता]] के ऊपर [[तात्पर्यदीपिका]] नामक व्याख्या लिखी है। सायण को वेदों के भाष्य लिखने का आदेश तथा प्रेरणा देने का श्रेय इन्हीं माधवाचार्य को है। इसी कारण सायणने वेदभाष्यको "माधवीय वेदार्थप्रकाश" नाम दिया है|
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सायण के तीन गुरुओं का परिचय उनके ग्रंथों में मिलता है-
*(1) विद्यातीर्थ रुद्रप्रश्नभाष्य के रचयिता तथा परमात्मतीर्थ के शिष्य थे जिनका निर्देश सायण के ग्रंथों में महेश्वर के अवतार रूप में किया गया है।
*(2) भारती तीर्थ श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य थे।
*(3) श्रीकंठ जिनके गुरु होने का उल्लेख सायण ने अपने कांची के शासनपत्र में तथा भोगनाथ ने अपने महागणपतिस्तव में स्पष्ट रूप से किया है।
== सायण के ग्रंथ ==
सायणाचार्य 'वेदभाष्यकार' की ख्याति से मंडित हैं। परंतु वेदभाष्यों के अतिरिक्त भी उनके प्रणीत ग्रंथों की सत्ता है जिनमें अनेक अभी तक अप्रकाशित ही पड़े हुए हैं। इन ग्रंथों के नाम हैं-<ref>Vijayanagara Literature from book History of Andhras, p. 268f.
</ref><ref>Encyclopaedia of Indian Literature: sasay to zorgot from book 'Encyclopaedia of Indian Literature, p. 3885f.</ref>
(1) '''सुभाषित सुधानिधि''' - नीति वाक्यों का सरस संकलन। कंपण भूपाल केसमय की रचना होने से यह उनका आद्य ग्रंथ प्रतीत होता है।
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== वेदभाष्यों का महत्व ==
सायण से पहले भी वेद की व्याख्याएँ की गई थीं। कुछ उपलब्ध भी हैं। परंचु समस्त वेद की ग्रंथ राशि का इतना सुचिंतित भाष्य
==सन्दर्भ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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