"सर्वानुक्रमणी": अवतरणों में अंतर

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[[वेद]]राशि की सुरक्षा के लिए तथा [[मंत्र|मंत्रों]] की आर्य परंपरा को सुव्यवस्थित बनाए रखने के उद्देश्य से प्राचीन महर्षियों ने प्रत्येक वैदिक [[संहिता]] के विविध विषयों की क्रमबद्ध '''अनुक्रमणी''' (या 'अनुक्रमणिका') बनाई है। [[संस्कृत]] वाङ्मय के [[सूत्रसाहित्य]] के अंतर्गत छह [[वेदांग|वेदांगों]] के अतिरिक्त अनुक्रमणियों का भी समावेश है।
 
ऐसी अनुक्रमाणियाँ अनेक हैं। इनमें वैदिक संहिताओं के सकल सूक्त, उनमें प्रयुक्त पद, प्रत्येक मंत्र के द्रष्टा ऋषि, प्रत्येक [[ऋचा]] के [[छंद]] और [[देवता]] क्रमबद्ध रूप से अनुसूचित हैं। संकलित विषय के अनुसार इनकी पृथक् पृथक् संज्ञाएँ हैं- जैसे
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* '''आर्षानुक्रमणी''' में ऋषिगण और उनकी कुलपरंपरा की सूची है;
* '''छंदोनुक्रमणी''' में वैदिक मंत्रों के छंद का नामनिर्देश है;
* '''[[बृहद्देवता]]''' में देवताओं की अनुक्रमणी है;
* '''मंत्रानुक्रम''' में संहिता के अंतर्गत मंत्रों का क्रमश: उल्लेख है।
उसी तरह मंडलांतानुक्रम और देवानुक्रम भी है। इस प्रकार किसी भी वैदिक मंत्र का ऋषि, छंद या देवता कौन है अथवा वह मंत्र किस मंडल, अनुवाक या सूक्त का है, यह जानने के लिए तत्संबंधी अनुक्रमणी का अवलोकन सहायक होता है।
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इस कठिनाई को दूर करने की दृष्टि से महर्षि [[कात्यायन]] ने एक ऐसी अनुक्रमणी की रचना की जिसमें संहिता के अंतर्गत समस्त मंत्रों के संबंध में सकल ज्ञेय वस्तु की एकत्र उपलब्धि हो जाए। इसमें प्रत्येक मंत्र का छंद, देवता, ऋषि, मंडल, सूक्त, एवं अनुवाद का विवरण पूर्ण रूप से एक ही स्थान पर दिया हुआ मिलता है। इसे उन्होने '''सर्वानुक्रमणि''' नाम दिया। कात्यायन प्रणीत सर्वानुक्रमणी की संज्ञा का निर्वचन किया है- ''सर्वज्ञेयार्थ वर्णनात् सर्वानुक्रमणीशब्दं निर्बुवंति विपश्चित:'' ।
 
कात्यायन ने एक सर्वानुक्रमणी [[ऋग्वेद]] की शाकल एवं वाष्कल संहिता की बनाई और दूसरी शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयि संहिता की। कात्यायन प्रणीत सर्वानुक्रमणी पर "वेदार्थदीपिका" नामक एक सुंदर व्याख्या [[षड्गुरुशिष्य]] द्वारा रची गई जो अत्यंत प्रामाणिक मानी जाती है। विषय विशेष को लेकर [[शौनक]] द्वारा प्रणीत अन्य अनुक्रमणियाँ पद्यबद्ध हैं; कात्यायन की दोनों ही सर्वानुक्रमणियाँ गद्यात्मक हैं और वे गद्य सूत्रशैली में निबद्ध हैं। सर्वानुक्रमणी के प्रणेता कात्यायन वही थे जिन्होंने [[पाणिनि]] की [[अष्टाध्यायी]] पर [[वार्तिक]] की रचना की। [[पाणिनि]] से परवर्ती एवं [[महाभाष्य]]कार [[पतंजलि]] से पूर्ववर्ती कात्यायन थे। इस संबंध में [[षड्गुरुशिष्य]] लिखते हैं-
 
:''वाजिनां सूत्रकृत्साम्नामुपग्रंथस्य कारक:।कारकः।
:''स्मृतेश्च कर्त्ता श्लोकानां भ्राजानाम्नाम्ञ्व कारक:।।कारकः॥
:महावार्त्तिकनौकार:''महावार्त्तिकनौकारः पाणिनीयमहार्णवे।
:योगाचार्य:''योगाचार्यः स्वयं कर्त्ता योगशास्त्रनिदानयो:।।योगशास्त्रनिदानयोः॥
:''एवंगुणगणैर्युक्तः कात्यायनमहामुनिः।
:एवंगुणगणैर्युक्त: कात्यायनमहामुनि:।
:''तपोयोगान्निर्ममे य:यः सर्वानुक्रमणीमिमाम्"।।
 
सर्वानुक्रमणी का रचनाकाल सूत्रयुग के अंतिम चरण में ही माना जा सकता है। सूत्रयुग का कालनिर्णय पाश्चात्य इतिहासकारों ने ईसापूर्व 600 से 200 तक का स्वीकार किया है।
 
ऋग्वेद संबंधी सर्वानुक्रमणी सूत्र शैली में रचित एक बड़ा ग्रंथ है। मुद्रित रूप में इसका आयाम लगभग 46 पृष्ठ का है। इसके पहले 12 अध्यायों में प्रास्ताविक चर्चा है जिनमें से 9 अध्यायों में वैदिक छंदों के स्वरूप और रचनापद्धति पर परिचयात्मक निबंध है। सर्वानुक्रमणी के प्रणेता कात्यायन ने ग्रंथारंभ में "यथोपदेश मैं ऋग्वेद की ऋचाओं के प्रतीक आदि की अनुक्रमणी प्रस्तुत करता हूँ" ऐसी प्रतिज्ञा की है। यथोपदेश से यह संकेत है कि यह रचना तत्पूर्व शौनकप्रणीत विविध छंदोबद्ध के आधार पर की गई है। क्योंकि सर्वानुक्रमणी में कतिपय गद्यांश वृत्तगंधी हैं ओर शौनकीय आर्षानुक्रमणी और बृहद्देवता में प्रयुक्त कतिपय पद स्वरूपत:स्वरूपतः परिगृहीत हैं। कात्यायन प्रणीत ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी का संपादन आचार्य मैक्डोनल ने किया है जो ऑक्सफ़र्ड से सन् 1886 ईसवी में प्रकाशित हुई। इसमें अनुवाकानुक्रमणी तथा षड्गुरुशिष्य का भाष्य भी परिशिष्ट में मुद्रित है।
 
कात्यायनप्रणीत शुक्लयजुर्वेदीय सर्वानुक्रमणी में केवल पाँच ही अध्याय हैं। पहले चार अध्यायों में याजुष मंत्रों के द्रष्टा ऋषियों, देवताओं और छंदों की नामत: गणना है। इसकी एक और विशेषता यह है कि संहिताकाल से उत्तरवर्ती युग के नए ऋषियों के भी नाम संगृहीत हैं जिनमें कतिपय [[शतपथ ब्राह्मण]] से संबंध रखनेवाले भी हैं। इसके अंतिम अध्याय में वाजसनेयि संहिता के मंत्रों का संक्षिप्त विवरण भी दिया है। शुक्लयजुर्वेदीय सर्वानुक्रमणी का प्रकाशन वेबर द्वारा संपादित यजुर्वेद के संस्करण में परिशिष्ट रूप से संगृहीत है, तथा स्वतंत्र रूप से यह ग्रंथ सभाष्य [[बनारस संस्कृत सीरीज़]] के अंतर्गत ईसवी सन् 1893-94 में सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ मिलता है। ग्रंथ का नाम "कात्यायनप्रणीत शुक्ल यजु: सर्वानुक्रमसूत्र-याज्ञिकानंतदेव कृत भाष्य सहित" दिया है।
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.dli.ernet.in/cgi-bin/metainfo.cgi?&title1=Katyayanas%20Sarvanukramani%20Of%20The%20Rigveda&author1=Katyayan&subject1=RELIGION.%20THEOLOGY&year=1886&language1=sanskrit&pages=264&barcode=4990010095146&publisher1=Clarendon%20Press,%20Oxford&vendor1=NONE&scanningcentre1=C-DAC,%20Kolkata&slocation1=NONE&sourcelib1=RAMKRISHNA%20MISSION%20INSTITUTE%20OF%20CULTURE,%20GOLPARK&scannerno1=0&digitalrepublisher1=Digital%20Library%20Of%20India&digitalpublicationdate1=2006-05-17&rights1=In%20Public%20Domain&format1=Tagged%20Image%20File%20Format&url=/rawdataupload/upload/0095/146%20target= कात्यायन रचित सर्वानुक्रमणिका] (भारत का आंकिक पुस्तकालय)
* [http://fourvedas.webs.com/vedic-concordances-index Index of Vedic Concordances]
* [https://docs.google.com/file/d/0B1Fcp4QS2TSCQ0llVzAzcUNKQkU/edit VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 1]
* [https://docs.google.com/file/d/0B1Fcp4QS2TSCTm93dTBINTN3cEk/edit VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 2]
* [https://docs.google.com/file/d/0B1Fcp4QS2TSCMGowNzNLMTE5WEk/edit VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 3]
 
[[श्रेणी:वेद]]