"सामाजिक प्रक्रम": अवतरणों में अंतर

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(1) '''आकार के आधार पर संख्यात्मक रूप से परिभाषित''' - जनसंख्या की वृद्धि, एक स्थान पर कुछ वस्तुओं का पहले से अधिक संख्या में एकत्र होना, जैसे अनाज की मंडी में बैलगाड़ियों या ग्राहकों का दिन चढ़ने के साथ बढ़ना, इसके उदाहरण हैं। मैकईश्वर ने इसके विपरीत दिशा में उदाहरण नहीं दिए हैं, किंतु बाजार का शाम को समाप्त होना, बड़े नगर में दिन के 8 से 10 बजे के बीच बसों या रेलों द्वारा बाहरी भाग से भीतरी भागों में कई व्यक्तियों का एकत्र होना तथा सायंकाल में विसर्जित होना ऐसे ही उदाहरण हैं। अकाल तथा महामारी के फैलने से जनहानि भी इसी प्रकार के प्रक्रम के द्योतक हैं।
 
(2) '''संरचनात्मक तथा क्रियात्मक दृष्टि से गुण में होने वाली परिवर्तन''' - किसी भी सामाजिक इकाई में आंतरिक लक्षणों का प्रादुर्भाव होना या उनका लुप्त होना इस प्रकार के प्रक्रम के द्योतक हैं। जनतंत्र के लक्षणों का लघु रूप से पूर्णता की ओर बढ़ना ऐसा ही प्रक्रम है। एक छोटे कस्बे का नगर के रूप में बढ़ना, प्राथमिक पाठशाला का माध्यमिक तथा उच्च शिक्षणालय के रूप में सम्मुख आना, छोटे से पूजा स्थल का मंदिर या देवालय की अवस्था प्राप्त करना विकास के उदाहरण हैं। विकास की क्रिया से आशय उन गुणों की अभिवृद्धि से है जो एक अवस्था में लघु रूप से दूसरी अवस्था में वृहत्‌ तथा अधिक गुणसंपन्न स्थिति को प्राप्त हुए हैं। यह वृद्धि केवल संख्या या आकार की नहीं, वरन्‌ आंतरिक गुणों की है। इस भाँति की वृद्धि संरचना में होती है और क्रियाओं में भी। इंग्लैंड में प्रधानमंत्री और संसद के गुण रूपी वृद्धि (प्रभाव या शक्ति की वृद्धि) में निरंतरता देखी गई है। इस विकास की दो दिशाएँ थीं। इन्हें किसी भी दिशा से देशादेखा जा सकता है। भारत में कांग्रेस का उदय और स्वतंत्रता की प्राप्ति एक ओर तथा ब्रिटिश सरकार का निरंतर शक्तिहीन होना दूसरी ओर इसी रूप से देखा जा सकता है। जब तक सामाजिक विकास में नई आने वाली गुण संबंधी अवस्था को पहले आने वाली अवस्था से हेय या श्रेय बताने का प्रयास नहीं किया जाता, तब तक सामाजिक प्रक्रम विकास व ्ह्रास की स्थिति स्पष्ट करते हैं।
 
(3) ''' निश्चित मर्यादाओं के आधार पर लक्ष्यों का परिवर्तन''' - जब एक अवस्था से दूसरी अवस्था की ओर जाना सामाजिक रूप से स्वीकृत वा श्रेय माना जाए तो उस प्रकार का प्रक्रम उन्नति या प्रगति का रूप लिए होता है और जब सामाजिक मान्यताएँ परिवर्तन द्वारा लाई जाने वाली दिशा को हीन दृष्टि से देखें तो उसे पतन या विलोम होने की प्रक्रिया कहा जाएगा। रूस में साम्यवाद की ओर बढ़ाने वाले कदम प्रगतिशील माने जाएँगे, अमरीका में राजकीय सत्ता बढ़ाने वाले कदम पतन की परिभाषा तक पहुँच जाएंगे, शूद्र वर्ण के व्यक्तियों का ब्राह्मण वर्ण में खान-पान होना समाजवादी कार्यक्रम की मान्यताओं में प्रगति का द्योतक है और परंपरागत व्यवस्थाओं के अनुसार अध:पतन का लक्षण। कुछ व्यवस्थाएँ एस समय की मान्यताओं के अनुसार श्रेयस्कर हो सकती हैं और दूसरे समय में उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखा जा सकता है। रोम में ग्लेडिएटर की व्यवस्था, या प्राचीन काल में दास प्रथा की अवस्था में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर भावनाएँ निहित थीं। समाज में विभिन्न वर्ग या समूह होते हैं, उनसे मान्यताएँ निर्धारित होती हैं। एक समूह की मान्यताएँ कई बार संपूर्ण समाज के अनुरूप होती हैं। कभी-कभी वे विपरीत दिशाओं में भी जाती हैं और उन्हीं के अनुसार विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों का मूल्यांकन श्रेय वा हेय दिशाओं में किया जा सकता है। जब तक सामाजिक मान्यताएँ स्वयं न बदल जाएँ, वे परिवर्तनों को प्रगति या पतन की परिभाषा लंबे समय तक देती रहती हैं।