"ययाति": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
NehalDaveND (वार्ता | योगदान) इक्ष्वाकु वंश के ही राजा थे |
|||
पंक्ति 1:
[[File:Emperor Yayathi.png|thumb|राजा ययाति की छाया अनुकृति]]
'''ययाति''',
ययाति की दो पत्नियाँ थीं। [[शर्मिष्ठा]] के तीन और [[देवयानी]] के दो पुत्र हुए। ययाति ने अपनी वृद्धावस्था अपने पुत्रों को देकर उनका यौवन प्राप्त करना चाहा, पर पुरू को छोड़कर और कोई पुत्र इस पर सहमत नहीं हुआ। पुत्रों में पुरू सबसे छोटा था, पर पिता ने इसी को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और स्वयं एक सहस्र वर्ष तक युवा रहकर शारीरिक सुख भोगते रहे। तदनंतर पुरू को बुलाकर ययाति ने कहा - 'इतने दिनों तक सुख भोगने पर भी मुझे तृप्ति नहीं हुई। तुम अपना यौवन लो, मैं अब वाणप्रस्थ आश्रम में रहकर तपस्या करूँगा।' फिर घोर तपस्या करके ययाति [[स्वर्ग]] पहुँचे, परंतु थोड़े ही दिनों बाद [[इंद्र]] के शाप से स्वर्गभ्रष्ट हो गए ([[महाभारत]], आदिपर्व, ८१-८८)। अंतरिक्ष पथ से पृथ्वी को लौटते समय इन्हें अपने दौहित्र, अष्ट, शिवि आदि मिले और इनकी विपत्ति देखकर सभी ने अपने अपने पुण्य के बल से इन्हें फिर स्वर्ग लौटा दिया। इन लोगों की सहायता से ही ययाति को अंत में मुक्ति प्राप्त हुई।
|