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सत्रहवीं सदी में आये अंगरेज़ों ने आम भारतीयों को एक-एक रोटी तक को मोहताज कर दिया। फिर उन्होंने गुलामी की शर्त पर लोगों को विदेश भेजना प्रारंभ किया। इन मज़दूरों को '''गिरमिटिया''' कहा गया। गिरमिट शब्द अंगरेजी के `एग्रीमेंट' शब्द का अपभ्रंश बताया जाता है। जिस कागज पर अंगूठे का निशान लगवाकर हर साल हज़ारों मज़दूर दक्षिण अफ्रीका या अन्य देशों को भेजे जाते थे, उसे मज़दूर और मालिक `गिरमिट' कहते थे। इस दस्तावेज के आधार पर मज़दूर गिरमिटिया कहलाते थे। हर साल १० से १५ हज़ार मज़दूर गिरमिटिया बनाकर [[फिजी]], [[ब्रिटिश गुयाना]], [[डच गुयाना]], [[ट्रिनीडाड]], [[टोबेगा]], [[नेटाल]] (दक्षिण अफ्रीका) आदि को ले जाये जाते थे। यह सब सरकारी नियम के अंतर्गत था। इस तरह का कारोबार करनेवालों को सरकारी संरक्षण प्राप्त था।
 
== इतिहास ==
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== गिरमिटिया प्रथा के विरुद्ध तोताराम सनाढय का अभियान ==
तोताराम सनाढय का जन्म 1876 में [[हिरनगाँव]] जिला फीरोजाबाद उतर प्रदेश में हुआ था ।था। इनको हिंदुस्तान से फिजी गिरमिटिया बनाकर ले जाया गया तोताराम सनाढय ने गिरमिट पर अपने अनुभव [[फिजी द्वीप में मेरे इक्कीस वर्ष]] पुस्तक लिखी ।
 
== गिरमिटिया प्रथा के विरूद्ध महात्मा गांधी का सहयोग ==