"नाना साहेब": अवतरणों में अंतर

→‎जीवन वृतान्त: छोटा सा सुधार किया।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन
छो 106.210.135.169 (Talk) के संपादनों को हटाकर Salma Mahmoud के आखिरी अवतरण को पूर्वव...
पंक्ति 14:
1 जुलाई 1857 को जब [[कानपुर]] से अंग्रेजों ने प्रस्थान किया तो नाना साहब ने पूर्ण् स्वतंत्रता की घोषणा की तथा पेशवा की उपाधि भी धारण की। नाना साहब का अदम्य साहस कभी भी कम नहीं हुआ और उन्होंने क्रांतिकारी सेनाओं का बराबर नेतृत्व किया। [[फतेहपुर]] तथा आंग आदि के स्थानों में नाना के दल से और अंग्रेजों में भीषण युद्ध हुए। कभी क्रांतिकारी जीते तो कभी अंग्रेज। तथापि अंग्रेज बढ़ते आ रहे थे। इसके अनंतर नाना साहब ने अंग्रेजों सेनाओं को बढ़ते देख नाना साहब ने [[गंगा नदी]] पार की और [[लखनऊ]] को प्रस्थान किया। नाना साहब एक बार फिर कानपूर लौटे और वहाँ आकर उन्होंने अंग्रेजी सेना ने कानपुर व लखनऊ के बीच के मार्ग को अपने अधिकार में कर लिया तो नाना साहब अवध छोड़कर [[रोहिलखंड|रुहेलखंड]] की ओर चले गए। रुहेलखंड पहुँचकर उन्होंने खान बहादुर खान् को अपना सहयोग दिया। अब तक अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि जब तक नाना साहब पकड़े नहीं जाते, विप्लव नहीं दबाया जा सकता। जब [[बरेली]] में भी क्रांतिकारियों की हार हुई तब नाना साहब ने [[महाराणा प्रताप]] की भाँति अनेक कष्ट सहे परंतु उन्होंने फिरंगियों और उनके मित्रों के संमुख आत्मसमर्पण नहीं। अंग्रेज सरकार ने नाना साहब को पकड़वाने के निमित्त बड़े बड़े इनाम घोषित किए किंतु वे निष्फल रहे। सचमुच नाना साहब का त्याग एवं स्वातंत्र्य, उनकी वीरता और सैनिक योग्यता उन्हें भारतीय इतिहास के एक प्रमुख व्यक्ति के आसन पर बिठा देती है।
 
==इन्हें भी देखें==hohohoHohoh
{{भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम}}
 
==इन्हें भी देखें==
{{भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम}}