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अरविन्द को इस उपन्यास के लिए वर्ष 2008 के मैन बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार भारत की एक नई तस्वीर उकेरने के लिए दिया गया जिसने निर्णायक समिति के सदस्यों के स्तब्ध भी किया और उनका मनोरंजन भी किया। साथ ही अरविन्द ने खलनायक के प्रति घृणा की अपेक्षा मिश्रित भावनाएँ जगाने का मुश्किल काम सफलतापूर्वक कर डाला है।<ref name=jagran /> यह पुरस्कार पाने वाले वे भारतीय मूल के पांचवें लेखक हैं ([[वी एस नाइपॉल]], [[अरुंधति राय]], [[सलमान रश्दी]] और [[किरन देसाई]] के पश्चात्)।<ref name=navbharat>{{cite news|url=http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3597189.cms|title=अरविंद अडिगा को मैन बुकर पुरस्कार|author=|publisher=नवभारत टाइम्स|date=2008-10-15|accessdate=2008-10-16}}</ref> साथ ही अपने पहले उपन्यास पर यह पुरस्कार पाने वले ये तीसरे लेखक हैं और सबसे कम उम्र में बुकर पाने वाले लेखकों में दूसरे हैं।<ref name=janpath>{{cite news|url=http://janpathsamachar.co.in/newsdtl.php?type=QTAy&id=QTA5RS9dSTAzaC9S|title=अरविंद अडिगा ने जीता बुकर|author=|publisher=जनपथ समाचार|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref> इस वर्ष बुकर पुरस्कार के लिए जिन लेखकों के नाम पर विचार किया गया उनमें भारतीय मूल के एक और लेखक [[अमिताभ घोष]] शामिल थे। अरविन्द ने यह पुरस्कार [[दिल्ली]] शहर को समर्पित किया है।<ref name=bbc>{{cite news|url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2008/10/081014_booker_adiga.shtml|title=अरविंद अडिगा को मिला बुकर पुरस्कार|author=|publisher=बी बी सी हिन्दी|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref>
 
== संदर्भसन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==