"शिव कुमार बटालवी": अवतरणों में अंतर
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'''शिव कुमार 'बटालवी'''' ({{lang-pa|ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ}}) (1936 -1973) [[पंजाबी भाषा]] के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है।<ref>नलिनी नटराजन द्वारा ''हैंडबुक ऑफ़ ट्वेंटीएथ-सेंचरी लिट्रेचर्स ऑफ़ इंडिया'', इममैन्युल सैमपाथ नेल्सन. ग्रीनवुड प्रेस, 1996. ISBN 0-313-28778-3. ''पृष्ठ 258'' .</ref>
वे 1967 में वे [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। [[भारतीय साहित्य अकादमी|साहित्य अकादमी]] (भारत की साहित्य अकादमी) ने यह सम्मान [[पूरण भगत]] की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका ''
== जीवनी ==
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1953 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक किया और बटाला के बैरिंग यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज में एफ एससी कार्यक्रम में नामांकित हुए। अपनी डिग्री पूरी करने से पहले उन्होंने [[कादियाँ]] के एस एन कॉलेज के कला विभाग में दाखिला लिया, जो उनके व्यक्तित्व से ज्यादा मेल खाता था, हालांकि दूसरे साल में उन्होंने उसे भी छोड़ दिया। उसके बाद वह [[बैजनाथ (हिमाचल प्रदेश)|हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ]] के एक स्कूल में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के लिए दाखिल हुए, पर फिर उन्होंने इसे भी बीच में ही छोड़ दिया। <ref name="sikh">[http://www.sikh-heritage.co.uk/arts/shiv%20batalvi/Shiv%20batalvi.htm शिव कुमार बटालवी] ''sikh-heritage.co.uk.'' </ref> इसके बाद उन्होंने [[नाभा]] के सरकारी रिपुदमन कालेज में अध्ययन किया। उन्हें विख्यात पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से प्यार हो गया, जिन्होंने दोनों के बीच जाति भेद होने के कारण एक ब्रिटिश नागरिक से शादी कर ली। वह प्यार में दुर्भाग्यशाली रहे और प्यार की यह पीड़ा उनकी कविता में तीव्रता से परिलक्षित होती है।
बाद की जिंदगी में उनके पिता को [[कादियां]] में पटवारी की नौकरी मिली और इसी अवधि के दौरान उन्होंने अपना सबसे अच्छा साहित्यिक अवदान दिया। 1960 में उनकी कविताओं का पहला संकलन'' पीड़ां दा परागा '' (दु:खों का दुपट्टा) प्रकाशित हुआ, जो काफी सफल रहा। 1965 में अपनी महत्वपूर्ण कृति महाकाव्य नाटिका ''
5 फ़रवरी 1967 को उनका विवाह [[गुरदासपुर जिला|गुरदासपुर जिले]] के किरी मांग्याल की ब्राह्मण कन्या अरुणा से हुआ <ref>[http://www.tribuneindia.com/2003/20030508/cth1.htm#7 बटालवी बेतर हाफ कंस कॉलिंग] ''द ट्रिब्यून'', 8 मई 2003.</ref> और बाद में दंपती को दो बच्चे मेहरबां (1968) और पूजा (1969) हुए। 1968 में [[चण्डीगढ़|चंडीगढ़]] चले गये, जहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जन संपर्क अधिकरी बने। बाद के वर्षों में वे खराब स्वास्थ्य से त्रस्त रहे, हालांकि उन्होंने बेहतर लेखन जारी रखा।
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