"अभिज्ञानशाकुन्तलम्": अवतरणों में अंतर

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== काव्य-सौंदर्य ==
[[गेटे|जर्मन कवि गेटे]] ने अभिज्ञान शाकुन्तलम्शाकुन्तलं के बारे में कहा था-
 
:''‘‘यदि तुम युवावस्था के फूल प्रौढ़ावस्था के फल और अन्य ऐसी सामग्रियां एक ही स्थान पर खोजना चाहो जिनसे आत्मा प्रभावित होता हो, तृप्त होता हो और शान्ति पाता हो, अर्थात् यदि तुम स्वर्ग और मर्त्यलोक को एक ही स्थान पर देखना चाहते हो तो मेरे मुख से सहसा एक ही नाम निकल पड़ता है - शाकुन्तलम्, महान कवि कालिदास की एक अमर रचना !’’''
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:'''काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला'''।<br />
:'''तत्रापि च चतुर्थोऽङ्कस्तत्रचतुर्थोऽंकस्तत्र श्लोकचतुष्टयम्'''।।
 
इसका अर्थ है - ''काव्य के जितने भी प्रकार हैं उनमें नाटक विशेष सुन्दर होता है। नाटकों में भी काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से अभिज्ञान शाकुन्तलम्शाकुन्तलं का नाम सबसे ऊपर है। अभिज्ञान शाकुन्तलम्शाकुन्तलं का नाम सबसे ऊपर है। अभिज्ञान शाकुन्तलम्शाकुन्तलं में भी उसका चतुर्थ अंक और इस अंक में भी चौथा श्लोक तो बहुत ही रमणीय है।''
 
अभिज्ञान शाकुन्तल में नाटकीयता के साथ-साथ काव्य का अंश भी यथेष्ट मात्रा में है। इसमें [[शृंगार]] मुख्य रस है; और उसके संयोग तथा वियोग दोनों ही पक्षों का परिपाक सुन्दर रूप में हुआ है। इसके अतिरिक्त हास्य, वीर तथा करुण रस की भी जहां-तहां अच्छी अभिव्यक्ति हुई है। स्थान-स्थान पर सुन्दर और मनोहरिणी उतप्रेक्षाएं न केवल पाठक को चमत्कृत कर देती हैं, किन्तु अभीष्ट भाव की तीव्रता को बढ़ाने में ही सहायक होती हैं। सारे नाटक में कालिदास ने अपनी उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं का उपयोग कहीं भी केवल अलंकार-प्रदर्शन के लिए नहीं किया। प्रत्येक स्थान पर उनकी उपमा या उत्प्रेक्षा अर्थ की अभिव्यक्ति को रसपूर्ण बनाने में सहायक हुई है।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://dharmayan.blogspot.com/2008/10/kavya-saundarya.html अभिज्ञान शाकुंतलम्शाकुंतलं में काव्य सौंदर्य]
* [http://p068.ezboard.com/Shakuntala--a-Translations-now-with-Devanagiri-scripts/fsrivaishnavismfrm26.showMessage?topicID=6.topic अभिज्ञान शाकुंतलम्] (अंग्रेज़ी और देवनागरी में)
* [http://sanskrit.farfromreal.com/files/shakuntala.pdf English translation of '''Abhigyaanashaakuntalam'''] (pdf में)