"आपेक्षिकता सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

आकार में बदलाव नहीं आया ,  6 वर्ष पहले
छो
बॉट: वर्तनी एकरूपता।
छो (Reverted 1 edit by 49.32.32.200 (talk) identified as vandalism to last revision by CommonsDelinker. (TW))
छो (बॉट: वर्तनी एकरूपता।)
१९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईथर का अस्तित्व तथा उसके गुणधर्म स्थापित करने के अनेक प्रयत्न प्रयोग द्वारा किए गए। इनमें [[माइकलसन मोर्ले प्रयोग|माइकेलसनमॉर्ले का प्रयोग]] विशेष महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय है। [[पृथ्वी]], [[सूर्य]] की परिक्रमा ईथर के सापेक्ष जिस गति से करती है उस गति का यथार्थ मापन करना इस प्रयोग का उद्देश्य था। किंतु यह प्रयत्न असफल रहा और प्रयोग के फल से यह अनुमान निकाला गया कि ईथर के सापेक्ष पृथ्वी की गति शून्य है। इसका यह भी अर्थ हुआ कि ईथर की कल्पना असत्य है, अर्थात् ईथर का अस्तित्व ही नहीं है। यदि ईथर ही नहीं है तो निरपेक्ष मानक का भी अस्तित्व नहीं हो सकता।''' अत: गति केवल सापेक्ष ही हो सकती है।''' भौतिकी में सामान्यत: गति का मापन करने के लिए अथवा फल व्यक्त करने के लिए किसी भी एक पद्धति का निर्देश (रेफ़रेंस) देकर कार्य किया जाता है। किंतु इन निर्देशक पद्धतियों में कोई भी पद्धति 'विशिष्टतापूर्ण' नहीं हो सकती, क्योंकि यदि ऐसा होता तो उस 'विशिष्टतापूर्ण' निर्देशक पद्धति को हम विश्रांति का मानक समझ सकते। अनेक प्रयोगों से ऐसा ही फल प्राप्त हुआ।
 
इन प्रयोगों के फलों से केवल भौतिकी में ही नहीं, बल्कि [[विज्ञान]] तथा [[दर्शन]] में भी गंभीर अशांति उत्पन्न हुई। २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में (१९०४ में) प्रसिद्ध फ्रेंच गणितज्ञ [[एच. पॉइन्कारे]] ने आपेक्षिकता का प्रनियम प्रस्तुत कियाकिया। इनके अनुसार भौतिकी के नियम ऐसे स्वरूप में व्यक्त होने चाहिए कि वे किसी भी प्रेक्षक (देखनेवाले) के लिए वास्तविक हों। इसका अर्थ यह है कि भौतिकी के नियम प्रेक्षक की गति के ऊपर अवलंबित न रहें। इस प्रनियम से दिक् (स्पेस) तथा काल (टाइम) की प्रचलित धारणाओं पर नया प्रकाश पड़ा। इस विषय में [[आइंस्टाइन]] की विचारधारा, यद्यपि वह क्रांतिकारक थी, प्रयोगों के फलों को समझाने में अधिक सफल रही। आइंस्टाइन ने गति, त्वरण, दिक्, काल इत्यादि मौलिक शब्दों का और उनसे संयुक्त प्रचलित धारणाओं का विशेष विश्लेषण किया। इस विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि न्यूटन के सिद्धांतों पर आधारित तथा [[प्रतिष्ठित भौतिकी]] में त्रुटियाँ हैं।
 
आइंस्टीन प्रणीत आपेक्षिकता सिद्धांत के दो विभाग हैं :