"छत्तीसगढ़ के आदिवासी देवी देवता": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 100:
बुढ़ी मां बुढ़ी रहती है, जिसके बाल सफेद, गाल चिपके हुए एवं कमर झुकी हुई, हाथ में डन्डा लिए हुए रहती है। टुकना में लीम के डाल, बाहरी, लाल कपड़ा पूजा वाला, त्रिशुल रखी रहती है। उसके शरीर में चेचक का चिन्ह रहती है।
; मावली
मावली बकरी रुपरूप में दिखाई देती है।
; फूल मावली
स्त्री के चेहरा एवं पूरा शरीर में फूल दिखाई देती।
पंक्ति 118:
दन्तेश्वरी मां दुर्गा अवतार लिए है। इसका पहचान महिषासुर का किए दिखाया जाता है।
; टिकरा गोसई
इसका पहचान सिर में बाल नही और देवी का रुपरूप दिखना है।
; सात बहिनी
सातों बहिनी देवी का सकल एक ही दिखाई इसके लिए इसे सातों बहिनी माना जाता है।
पंक्ति 134:
चावर पूरन मां दोनों हाथ में चावर पकड़ा रहता है। उसको चावर पूरन मां माना जाता है।
; हीरा कुडेन मां
हीरा कुडेन मां को माना जाता है। एकदम बालिका रुपरूप में दिखाई देते है। हाथ चुड़ी माथा में सिन्दुर मांग में सिन्दुर मुह में लाली यही हीरा कुडेन मां का पहचान है।
; निरमला देवी
निरमला माता का पहचान सिर कमल का फूल और योग आसन हाथ में गोल-गोल चक्री रहता है। यही इसका पहचान है।
पंक्ति 140:
मुचिन खेंदर का पहचान जाता है कि जब आदमी उल्टी-टट्टी करते हुए मर जाता है उसका हर जा बीमार माना जाता है। उसका पहचान आंख बंद करके उल्टी करते हुए बैठ के मर जाता है।
; खपर वाली माई
माना जाता है कि नग्न रुपरूप में दिखाई देता है। जीभ लम्बा बड़े-बड़े थन और गला में सिर का माला पहचान होता है। कमर में हाथ को कपड़ा बनाकर पहनते हैं। यही खपर वाली माई का पहचान होता है।
 
[[श्रेणी:छत्तीसगढ़ की संस्कृति]]