"जमुई": अवतरणों में अंतर

थोड़ा ठीक किया
छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
पंक्ति 34:
 
=== गिद्धौर दुर्गा मंदिर ===
गिद्धौर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रुपरूप से दो ही पहचान है। एक यहां की पुरानी रियासत तथा दूसरा दुर्गापूजा और दोनों की एक लंबी परम्परा रही है। शैलवालाओं और झरनों से भरे वन प्रांतर के मध्य बसी थी गिद्धौर नगरी। जहां चार शताब्दी से भी अधिक वर्ष पूर्व तत्कालीन राजा ने अलीगढ़ से स्थापत्य से जुड़े राज मिस्त्री को बुलाकर गिद्धौर स्थित दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया था। तब से जैनागमों में चर्चित पवित्र नदी उच्चवालिया (उलाय नाम से प्रसिद्ध) तथा नागिन नदी के संगम पर बने इस मंदिर में दुर्गा पूजा अर्चना होती आ रही है।
 
गंगा और यमुना सरीखी इन दो पवित्र नदियों में सरस्वती स्वरुपनी दुधियाजोर मिश्रित होती है जिसे आज झाझा रेलवे के पूर्व सिग्नल के पास देखा जा सकता है। इस संगम में स्नान करने के उपरांत हरिवंश पुरान का श्रवण करने से निस्संतान दंपती को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के प्रारंभ होते ही सुदूर अंचल से ब्रह्मा मुहूर्त में इसी पवित्र नदी में स्नान कर नर-नारी दंडवत करते हुए इस मंदिर के द्वार पहुंचकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं। चंदेल राजाओं के गिद्धौर राज की इस राजधानी को परसंडा के नाम से भी जाना जाता है। बिहार प्रांत के पूर्वांचल जैनागमों में आए वर्णन के अनुसार यह दुर्गा पूजा के लिए सर्व प्रतिष्ठित स्थल है। दशहरा के अवसर पर यहां के राज्याश्रद्ध मेला में कभी मल्ल युद्ध का अभ्यास, तीरंदाजी, कवि सम्मेलन, नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता था। मीना बाजार लगाए जाते थे। हाल के वर्षो में इसकी जगह सर्कस, थियेटर ने ले लिया है। राज्याश्रद्ध इस मेले को चंदेल वंश के उत्तराधिकारी प्रताप सिंह ने जनाश्रत घोषित कर दिया है। दशहरा के पुनीत अवसर पर अतीत को पुर्नजागृत करने के लिए गिद्धौरवासी व पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह ने गिद्धौर संस्थान गठित कर गिद्धौर सांस्कृतिक महोत्सव की रचना की थी। लेकिन उनके आकस्मिक निधन के बाद पुन: गिद्धौर सांस्कृतिक महोत्सव की परम्परा थम सी गई है। इस इलाके के हजारों लोग स्वस्थ सांस्कृतिक मनोरंजन से वंचित हो गए हैं।
पंक्ति 58:
जिला मुख्यालय से लगभग १५ किलो मीटर दूर खैरा प्रखंड में गिद्धेश्वर स्थान है। कहा जाता है की राम व रावण की लड़ाई में जब रावण-सीता का अपहरण कर लंका जा रहा था तो यही वह स्थान है जब गिद्धराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। आज भी यह स्थान क्षेत्र के लोगों के लिए दर्शनीय केन्द्र है। यहाँ गिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी है जो यहाँ के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।
प्रचलित कथा के अनुसार यहां के पर्वत पर ही जटायु ने रावण से उस वक्त युद्ध किया था जब माता सीता का अपहरण कर ले जा रहा था। गुस्से में रावण ने जटायु का पंख काट डाला था और यहीं पर गिरकर मौक्ष की प्राप्ति किया था। चुकि जटायू गिद्ध था इसलिए इस स्थान का नाम गिद्धेश्वर और यहां निर्मित मंदिर का नाम गिद्धेश्वर मंदिर पड़ा। गिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण खैरा स्टेट के तत्कालीन तहसीलदार लाला हरिनंदन प्रसाद द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व किया गया है।
प्रकृति के खुबसूरत वादियों में बसे गिद्धेश्वर स्थान और इसके आसपास विशाल भू-भाग को आदर्श पिकनिक स्थल के रुपरूप में विकसित है। यहां हरे-भरे पेड़-पौधों से अच्छादित पर्वत, बीच में भव्य मंदिर, आगे शिवगंग (तालाब) तथा किउल नदी की कलकल-छलछल करती जलधारा बरबस ही श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैलानियों को भी आकर्षित करता है।
 
=== पत्नेश्वर स्थान ===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जमुई" से प्राप्त