"ज़ाँ प्याज़े": अवतरणों में अंतर

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'''ज़ाँ प्याज़े''' (Jean Piaget ; 9 अगस्त, 1896 – 16 सितम्बर, 1980) [[स्विटजरलैण्ड]] के एक चिकित्सा मनोविज्ञानी थे जो [[बाल विकास]] पर किये गये अपने कार्यों के कारण प्रसिद्ध हैं।
 
पियाजे, [[विकासात्मक मनोविज्ञान]] के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती हैं। अनेक पांडित्यपूर्ण अवधारणाओं के लिए हम पियाजे के ऋणी हैं जिनमें आज भी टिके रहने की क्षमता और आकर्षण है, जैसे समायोजन/आत्मसातकरण (Assimilation), अनुकूलन वस्तु स्थायित्व (object permanence), आत्मकेंन्द्रीकरण (Egocentrism), संरक्षण (conservation), तथा परिकाल्पनिक-निगमित सोच (Hypothetico-deductive reasoning) बच्चों के सक्रिय, रचनात्मक विचारक होने की वर्तमान दृष्टि के लिए भी हम, [[विलियम जेम्स]] तथा [[जॉन डुई]] के साथ-साथ, पियाजे के ऋणी हैंहैं।
 
बच्चों का निरीक्षण करने की पियाजे में विलक्षण प्रतिभा थी। उसके सावधानीपूर्वक किये गये प्रेक्षणों ने हमें यह खोजने के सूझबूझ भरे तरीके दिखाये कि बच्चे कैसे अपने संसार के साथ क्रिया करते हैं और तालमेल बिठाते हैं। पियाजे ने हमें [[संज्ञानात्मक विकास]] में कुछ खास चीजें खोजना सिखाया, जैसे [[पूर्वसंक्रियात्मक सोच]] से [[मूर्त संक्रियात्मक सोच]] में होने वाला बदलाव। उसने हमें यह भी दिखाया कि कैसे बच्चों को अपने अनुभवों की संगत अपनी योजनाओं (schemas/congnitive frameworks), संज्ञानात्मक ढांचों और साथ ही साथ अपनी योजनाओं की संगत अपने अनुभवों से बिठाने की जरूरत होती है। पियाजे ने यह भी दिखलाया कि यदि परिवेश की संरचना ऐसी हो जिसमें एक स्तर से दूसरे स्तर तक धीरे-धीरे बढ़ने की सुविधा हो तो, संज्ञानात्मक विकास होने की संभावना रहती है।हम अब इस प्रचलित मान्यता के लिए भी उसके ऋणी हैं कि अवधारणाएं अचानक अपने पूरे स्वरूप में प्रकट नहीं हो जातीं, बल्कि वे ऐसी छोटी-छोटी आंशिक उपलब्धियों की श्रृंखला से होती हुई विकसित होती हैं जिनके परिणाम स्वरूप क्रमशः अधिक परिपूर्ण समझ पैदा होती है।
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===बच्चों की सीखने की तत्परता के प्रति संवदेनशीलता ===
पियाजे वाली कक्षा विकास की गति को बढ़ाने की कोशिश नहीं करती। पियाजे मानता था कि बच्चों के सीखने के उपयुक्त अनुभव उनकी तात्कालिक सोच से ही विकसित होते हैंहैं। शिक्षक बच्चों को ध्यानपूर्वक देखते हैं, उनकी बातें सुनते हैं, और उन्हें ऐसे अनुभव सुलभ कराते हैं, जिनमें वे नई खोजी गई योजनाओं का अभ्यास कर सकें और जो उनके संसार को देखने के गलत तरीकों को चुनौती दे सकेंसकें। लेकिन शिक्षक बच्चों पर कोई नये कौशल नहीं थोपते जब तक वे उनमें रूचि और उनके लिए तैयारी नहीं दिखाते, क्योंकि ऐसा करने से वे वयस्कों के सूत्रों (formulas) को सतही ढंग से स्वीकार कर लेते हैं, पर उससे सच्ची समझ पैदा नहीं होती।
 
===व्यक्तिगत भेदों को स्वीकारना ===