"जादोपटिया चित्रकला": अवतरणों में अंतर

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'''जादोपटिया''' [[चित्रकला]] शैली [[झारखंड]]-[[बिहार]] की सीमा पर सदियों निवास करती आ रहे [[संताल जनजाति]] की वह लोकशैली है जो इस समाज के [[इतिहास]] और दर्शन को पूर्णतः अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है। यह संताली समाज से जुडी प्राचीन [[लोककला]] है, जो इस समाज के उद्भव विकास, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास एवं नैतिकता को व्यक्त करती है। इस शैली के कलाकार [[वंश परम्परा]] के आधार पर इस कला को अपनाते आए हैं। इनके नाम के साथ जादोपटिया शब्द जुडा रहता है। जादो संतालों में पुरोहितों को कहा जाता था। वे इस चित्रकला के सहारे अपनी जीविका चलाते थे। वे इस चित्रकला को लेकर गांव -गांव में घूमते थे और इसे दिखाते समय लयबद्ध स्वर में चित्रित विषय और कथा को गीत के रूप में लोगों के सामने रखते थे। जिससे संताली अपनी सस्कृति के बारे जान सके। अपनी इस संगीतमय प्रस्तुति के बाद वे लोगों से दक्षिणा लेते थे। चित्रकला की इस शैली को कपडे या कागज पर बनाया जाता है। कपडे पर सूई-धागे से सी कर ५ से २० फीट लंबा और डेढ या दो फीट चौडा पट तैयार किया जाता है। इसम ज्यादातर वैसे चित्रों का चयन किया जाता है जो इस समाज के सांस्कृतिक, नैतिक दृश्यो को दिखा सकें।<ref>http://newswing.com/?p=497</ref>
== संदर्भसन्दर्भ ==
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