"जातक कथाएँ": अवतरणों में अंतर

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कालक्रम की दृष्टि से वैदिक साहित्य की [[शुनःशेप]] की कथा यम-यमी संवाद, पुरूरवा उर्वशी संवाद आदि कथानक ही बुद्ध पूर्व काल के हो सकते है। छान्दोग्य और बृहदारण्यक आदि कुछ उपनिष्दों की आख्यायिकाएँ भी बुद्ध पूर्व काल की मानी जा सकती है, और इसी प्रकार ऐतरेय और शतपथ ब्राह्मण के कुछ आख्यान भी बुद्ध पूर्व काल की माने जा सकते हैं। इनका भी जातकों से और सामान्यतः पालि सहित्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। तेविज्ज सुत्त में अट्टक, वामक, वामदेव, विश्वामित्र, यमदग्नि, अिं र्घैंरा, भारद्वाज, वशिष्ठ, काश्यप और भृगु इन दस मन्त्रकर्ता ऋषियों के नामों के साथ-साथ ऐतरेय ब्राह्मण, तैति्तरीय ब्राह्मण, छान्दोग्य ब्राह्मण और छन्दावा ब्राह्मण का भी उल्लेख हुआ है। मज्झिम निकाय के अस्सलायन सुत्तन्त के आश्वालायन ब्राह्मण को प्रश्न उपनिषद के आश्वलायन से मिलाया गया है। मज्झिम निकाय के आश्वालायन श्रावस्ती निवासी है और वेद-वेदा र्घैं में पार र्घैं त है। इसी प्रकार प्रश्न उपनिषद के आश्वालयन भी वेद वेदा र्घैं के महापंडित है और कौसल्य (कोसल निवासी) है। जातकों में भी वैदिक साहित्य के साथ निकट सम्पर्क के अनेक लक्षण पाये जाते है। उद्दालक जातक (487)में उद्दालक के तक्षशिला जाने और वहाँ एक लोक विश्रुत आचार्य की सूचना पाने का उल्लेख है। इसी प्रकार सेतुकेतु जातक में उद्दालक के पुत्र श्वेतुकेतु का कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए तक्षशिला जाने का उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण के उद्दालक को हम उत्तरापथ में भ्रमण करते हुए देखते है। अतः इससे यह निष्कर्ष निकालना असंगत नहीं है कि जातकों के उद्दालक और श्वेतुकेतु ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों के इन नामों के व्यक्तियों से भिन्न नहीं है। जर्मन विद्वान लूडर्स ने सेतुकेतु जातक(377) में आने वाली गाथाओं को वैदिक आख्यान और महाकाव्य युगीन काव्य को मिलाने वाली कड़ी कहा है, जो समुचित ही है। इसी प्रकार सिंहली विद्वान मललसेकर का कहना है कि जातक का सम्बन्ध भारतीय साहित्य की उस आख्यान-विधा से है, जिससे उत्तरकालीन महाकाव्यों का विकास हुआ है। रामायण और महाभारत के साथ जातक की तुलना करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इन दोनों ग्रन्थों के सभी अंश बुद्ध पूर्व युग के नहीं है। रामायण के वर्तमान रूप में 2400 श्लोक पाये जाते हैं। रामायण में कहा भी गया है ‘चतुर्विंश सहस्राणि श्लोकानाम उक्त वान् ऋषिः। किन्तु बौद्ध महाविभाषा-शास्त्र (कात्यायनी पुत्र के ज्ञान प्रस्थान शास्त्र की व्याख्या) से सिद्ध है कि द्वितीय शताब्दी ईसवी में भी रामायण में केवल 12,000 श्लोक थे। रामायण 2-109-34 में बुद्ध तथागत का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार शक, यवन आदि के साथ संघर्ष का वर्णन है। किष्किन्धा काण्ड में सुग्रीव के द्वारा कुरू मद्र और हिमालय के बीच में यवनों औ र शकों के देश और नगरों को स्थित बताया गया है।
 
इससे सिद्ध है कि जिस समय में अंश लिखे गये थे, ग्रीक और सिथियन लोग पंजाब के कुछ प्रदेशों पर अपना आधिपत्य जमा चुके थे। अतः रामायण के काफी अंश महाराज बिम्बिसार या बुद्ध के काल के बाद लिखे गये। महा भारत में इसी प्रकार एडूकों (बौद्ध मन्दिरों) का स्पष्ट उल्लेख है। बौद्ध विशेषण चातुर्महाराजिक भी वहाँ आया है। रोमक (रोमन) लोगों का भी वर्णन है। इसी प्रकार सिथियन और ग्रीक आदि लोगों का भी वर्णन है। आदि पर्व में महाराज अशोक को महासुर कहा गया है और महावीर्योऽपराजितः के रूप में उसकी प्रशंसा की गई है। शान्ति पर्व में विष्णुगुप्त कौटिल्य (द्वितीय शताब्दी ईसवीं पूर्व) के शिष्य कामन्दक का भी अर्थविद्या के आचार्य के रूप में उल्लेख है। इस प्रकार अनेक प्रमाणों के आधार पर सिद्ध है कि महाभारत के वर्तमान रूप का काफी अंश बुद्ध अशोक और कौटिल्य विष्णुगुप्त के बाद के युग का है। जातक की अनेक गाथाओं और रामायण के श्लोकों में अद्भुत समानता है। दसरथ जातक (461) और देवधम्म जातक (6) में हमें प्रायः राम-कथा की पूरी रूपरेखा मिलती है। जयद्दिस जातक (513) में राम का दण्डकारण्य जाना दिखाया गया है। इसी प्रकार साम जातक(540) की सदृशता रामायण 2. 63-25 से है और विण्टरनित्ज के मत में जातक का वर्णन अधिक सरल और प्रारम्भिक है। वेस्सन्तर जातक के प्रकृति वर्णन का साम्य इसी प्रकार वाल्मीकि के प्रकृति वर्णन से है और इस जातक की कथा के साथ राम की कथा में भी काफी सदृशता है। महाभारत के साथ जातक की तुलना अनेक विद्वानों ने की है। उनके निष्कर्षों को यहाँ संक्षिप्ततम रूप में भी रखना वास्तव में बड़ा कठिन है। महाजनक जातक (539) के जनक उपनिषदों और महाभारत के ही ब्राह्मज्ञानी जनक है। मिथिला के प्रासादों को जलते देखकर जनक ने कहा था मिथिलायां प्रदीप्तायां न में दह्यति किंचनकिंचन। ठीक उनका यही कथन हमें महाजनक जातक (539) में भी मिलता है तथा कुम्भकार जातक (408) और सोणक जातक(529) में भी मिलता है। अतः दोनों व्यक्ति एक है।
 
इसी प्रकार ऋष्यशृर्घैं की पूरी कथा नकिनिका जातक(526) में है। युधिष्ठिर (युधिट्ठिल) और विदुर (विधूर) का संवाद दस ब्राह्मण जातक (495) में है। कुणाल जातक (536) में कृष्ण और द्रौपदी की कथा है। इसी प्रकार घट जातक(355) में कृष्ण द्वारा कंस-वध और द्वारका बसाने का पूरा वर्णन है। महाकण्ह जातक(469) निमि जातक(541) और महानारदकस्सप जातक(544) में राजा उशीनर और उसके पुत्र शिवि का वर्णन है। सिवि जातक (449) में भी राजा शिवि की दान पारमिता का वर्णन है, अपनी आँखों को दे देने के रूप में। अतः कहानी मूलतः बौद्ध है, इसमें सन्देह नहीं है। महाभारत में 100 ब्राह्मदत्तों का उल्लेख है। सम्भवतः ब्रह्मदत्त किसी एक राजा का नाम न होकर राजाओं का सामान्य विशेषण था, जिसे 100 राजाओं ने धारण किया। दुम्मेध जातक(50) में भी राजा और उसके कुमार दोनों का नाम ब्रह्मदत्त बताया गया है। इसी प्रकार गंगमाल जातक(421) मे कहा गया है कि ब्रह्मदत्त कुल का नाम है। सुसीम जातक(411), कुम्मासपिण्ड जातक(415), अट्ठान जातक(425), लोमासकस्सप जातक(433) आदि जातकों की भी, यही स्थिति है। अतः जातकों में आये हुए ब्रह्मदत्त केवल एक समय के पर्याय नहीं है। उनमें कुछ न कुछ ऐतिहासिकता भी अवश्य है।