"दार्जिलिंग": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[चित्र:Darjeeling St. Andrew's Church.jpg|thumb|250px|St. Andrew's Church, Darjeeling. Built- 1843, Rebuilt- 1873]]
इस स्‍थान की खोज उस समय हुई जब आंग्‍ल-नेपाल युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुक‍ड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्‍ता तलाश रही थी। इस रास्‍ते से सिक्‍िकम तक आसान पहुंच के कारण यह स्‍थान ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रुपरूप से काफी महत्‍वपूर्ण था। इसके अलावा यह स्‍थान प्राकृतिक रुपरूप से भी काफी संपन्‍न था। यहां का ठण्‍डा वातावरण तथा बर्फबारी अंग्रेजों के मुफीद थी। इस कारण ब्रिटिश लोग यहां धीरे-धीरे बसने लगे।
 
प्रारंभ में दार्जिलिंग सिक्किम का एक भाग था। बाद में भूटान ने इस पर कब्‍जा कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद सिक्किम ने इस पर पुन: कब्‍जा कर लिया। परंतु 18वीं शताब्‍दी में पुन: इसे नेपाल के हाथों गवां दिया। किन्‍तु नेपाल भी इस पर ज्‍यादा समय तक अधिकार नहीं रख पाया। 1817 ई. में हुए आंग्‍ल-नेपाल में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्‍ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा।
 
अपने रणनीतिक महत्‍व तथा तत्‍कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण 1840 तथा 50 के दशक में दार्जिलिंग एक युद्ध स्‍थल के रुपरूप में परिणत हो गया था। उस समय यह जगह विभिन्‍न देशों के शक्‍ित प्रदर्शन का स्‍थल बन चुका था। पहले तिब्‍बत के लोग यहां आए। उसके बाद यूरोपियन लोग आए। इसके बाद रुसी लोग यहां बसे। इन सबको अफगानिस्‍तान के अमीर ने यहां से भगाया। यह राजनीतिक अस्थिरता तभी समाप्‍त हुई जब अफगानिस्‍तान का अमीर अंगेजों से हुए युद्ध में हार गया। इसके बाद से इस पर अंग्रेजों का कब्‍जा था। बाद में यह जापानियों, कुमितांग तथा सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की भी कर्मस्‍थली बना। स्‍वतंत्रता के बाद ल्‍हासा से भागे हुए बौद्ध भिक्षु यहां आकर बस गए।
 
वर्तमान में दार्जिलिंग पश्‍िचम बंगाल का एक भाग है। यह शहर 3149 वर्ग किलोमीटर में क्षेत्र में फैला हुआ है। यह शहर त्रिभुजाकर है। इसका उत्तरी भाग नेपाल और सिक्किम से सटा हुआ है।
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=== भूटिया-‍‍बस्‍ती-मठ ===
यह डार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है। यह मूल रुपरूप से ऑब्‍जरबेटरी हिल पर 1765 ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था। इस मठ को नेपालियों ने 1815 ई. में लूट लिया था। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्‍थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861 ई. की गई। अंतत: यह अपने वर्तमान स्‍थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्‍ती में 1879 ई. स्‍थापित हुआ। यह मठ तिब्‍बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है। इस मठ में भी बहुमूल्‍य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है।
 
यहां का मखाला मंदिर काफी आकर्षक है। यह मंदिर उसी जगह स्‍थापित है जहां भूटिया-बस्‍ती-मठ प्रारंभ में बना था। इस मंदिर को भी अवश्‍य घूमना चाहिए।
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चाय का पहला बीज जो कि चाइनिज झाड़ी का था कुमाऊं हिल से लाया गया था। लेकिन समय के साथ यह डार्जिलिंग चाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1886 ई. में टी. टी. कॉपर ने यह अनुमान लगाया कि तिब्‍बत में हर साल 60,00,000 lb चाइनिज चाय का उपभोग होता था। इसका उत्‍पादन मुख्‍यत: सेजहवान प्रांत में होता था। कॉपर का विचार था कि अगर तिब्‍बत के लोग चाइनिज चाय की जगह भारत के चाय का उपयोग करें तो भारत को एक बहुत मूल्‍यावान बाजार प्राप्‍त होगा। इसके बाद का इतिहास सभी को मालूम ही है।
 
स्‍थानीय मिट्टी तथा हिमालयी हवा के कारण डार्जिलिंग चाय की गणवता उत्तम कोटि की होती है। वर्तमान में डार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87 चाय उद्यान हैं। इन उद्यानों में लगभग 50000 लोगों को काम मिला हुआ है। प्रत्‍येक चाय उद्यान का अपना-अपना इतिहास है। इसी तरह प्रत्‍येक चाय उद्यान के चाय की किस्‍म अलग-अलग होती है। लेकिन ये चाय सामूहिक रुपरूप से ''डार्जिलिंग चाय' के नाम से जाना जाता है। इन उद्यानों को घूमने का सबसे अच्‍छा समय ग्रीष्‍म काल है जब चाय की पत्तियों को तोड़ा जाता है। हैपी-वैली-चाय उद्यान (टेली: 2252405) जो कि शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है, आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां आप मजदूरों को चाय की पत्तियों को तोड़ते हुए देख सकते हैं। आप ताजी पत्तियों को चाय में परिवर्तित होते हुए भी देख सकते हैं। लेकिन चाय उद्यान घूमने के लिए इन उद्यान के प्रबंधकों को पहले से सूचना देना जरुरी होता है।
 
== चाय ==