"नवधा भक्ति": अवतरणों में अंतर

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श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।
 
'''श्रवण''': ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोतस्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।
 
'''कीर्तन''': ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।