"पराशर (कृषि पराशर के रचयिता)": अवतरणों में अंतर
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==कृषि पराशर==
कृषि पराशर संस्कृत भाषा में निबद्ध कृषि का सवा्रधिक चर्चित ग्रन्थ
देवासुरमनुष्याश्च सर्वे चान्नोपजीविनः ॥ (६)<br>अन्नं हि धान्यसंजातं धान्यं कृपया विना न
तस्मादादौ प्रयत्नेन वृष्टिज्ञानं समाचरेत् ॥ (१०)</ref> तथा इसी क्रम में बतलाया है कि विभिन्न ग्रहों का वर्षा पर क्या प्रभाव पडता है जैसे कि चन्द्रमा के संवत्सर का राजा होने पर पृथ्वी धान्य से पूर्ण होती है तथा शनि के राजा होने पर वर्षा मन्द होती
इसी प्रकार मेघों के प्रकार का वर्णन, अलग-अलग ऋतुओं में होने वाली वर्षा के लक्षणों का वर्णन तथा अनावृष्टि के लक्षणों का भी पराशर ने वर्णन किया है। साथ ही ऋषि ने कृषि कर्म में नियुक्त पशुओं के भी उचित रखरखाव करने को कहा है तथा उतना ही कृषि कर्म करनेका निर्देश किया है जिससे पशु को कष्ट न हो जो पशुओं के प्रति भारतीय व्यवहार का द्योतक है।<ref>कृषिं च तादृशीं कुर्याद्यथा वाहान्न
इसके पश्चात् गौशाला की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देने की बात कही
इसके पश्चात शोधित किए तथा संरक्षित हुए बीजों को उचित समय में बोने का निर्देश है साथ ही धान्य को काटने तथा उसको तृणरहित करने का वर्णन
न सम्यक् प्हलमाप्नोति तृणक्षीणा कृषिर्भवेत् ॥ (१८९)</ref>
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