"पुष्य": अवतरणों में अंतर
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पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं। सूर्य जुलाई के तृ्तीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिन्दु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है।
पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला. मतान्तर से पुष्य को पुष्प का बिगडा़
गाय में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। कर्क राशि के स्वामी चन्द्रमा को भी माता का प्रतीक माना जाता है। अत: इस नक्षत्र में मातृ्त्व के सभी गुण माने जाते हैं। पुष्य नक्षत्र उत्पादन क्षमता, उत्पादकता, संरक्षणता, संवर्धन व समृ्द्धि का प्रतीक माना जाता है। कुछ विद्वान तीन तारों में चक्र की गोलाई देखते हैं। वे चक्र को प्रगति 'रथ' का चक्का मानते हैं।
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