"प्रमाणमीमांसा": अवतरणों में अंतर

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सामान्यतः [[जैन]] और [[हिन्दु]] [[धर्म]] में कोई विशेष अंतर नहीं है। जैन धर्म वैदिक [[कर्मकाण्ड]] के प्रतीबंध एवं उस के हिंसा संबंधी विधानोकों स्वीकार नहीं करता। [[हेमचंद्राचार्य]] के दर्शन ग्रंथ 'प्रमाणमीमांसा' का विशिष्ट स्थान है। हेमचंद्र के अंतिम अपूर्ण ग्रंथ प्रमाण मीमांसा का प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी द्वारा संपादान हुआ। सूत्र शैली का ग्रंथ कणाद या अक्षपाद के समान है। दुर्भाग्य से इस समय तक १०० [[सूत्र]] ही उपलब्ध है। संभवतः वृद्वावस्था में इस ग्रंथ को पूर्ण नहीं कर सके अथवा शेष भाग काल कवलित होने का कलंक शिष्यों को लगा। हेमचंद्र के अनुसार प्रमाण दो ही है। प्रत्यक्ष ओर परोक्ष। जो एक दुसरे से बिलकुल अलग है। स्वतंत्र आत्मा के आश्रित ज्ञान ही प्रत्यक्ष है। आचार्य के ये विचार तत्वचिंतन में मौलिक है। हेमचंद्र ने तर्क शास्त्रमें [[कथा]] का एक वादात्मक रुपरूप ही स्थिर किया। जिस में छल आदि किसी भी कपट-व्यवहार का प्रयोग वर्ज्य है। हेमचंद्र के अनुसार इंद्रियजन्म, मतिज्ञान और परमार्थिक केवलज्ञान में सत्य की मात्रा में अंतर है, योग्यता अथवा गुण में नहीं। प्रमाण मीमांसा से संपूर्ण [[भारतीय दर्शन]] शास्त्र के गौरव में वृद्वि हुई।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.jainlibrary.org/jlib/Acharya_Hemchandra.pdf '''आचार्य हेमचंद्र'''] ([[मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी]])