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'''मन्दाकिनी''' या गैलेक्सी, असंख्य [[तारा|तारों]] का समूह है जो स्वच्छ और अँधेरी रात में, [[आकाश]] के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती सी मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। [[भारत]] में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्नदी, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं।
 
हमारी [[पृथ्वी]] और [[सूर्य]] जिस गैलेक्सी में अवस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही १९ अरब गैलेक्सीएँ होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग थ्योरी आफऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सीएँ एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं।
 
[[ब्रह्माण्ड]] में सौ अरब '''गैलेक्सी''' अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, [[गैस]] और [[खगोलीय धूल]] को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है।
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कुछ तीव्र गतिवाले तारे और गोलीय तारगुच्छ (ग्लोब्यूलर क्लस्टर) हमारी गैलेक्सी की सीमा के बाहर हैं, किंतु ये भी हमारी गैलेक्सी से संबद्ध हैं और उसी के अंग माने जाते हैं (द्र. चित्र) लगभग १०० गोलीय तारागुच्छ ज्ञात हैं। इनका वितरण गोलाकार है। इन तारागुच्छों के वितरण से गैलेक्सी का केंद्र ज्ञात किया जा सकता है। तारों की गति नापने से भी केंद्र की गणना में सहायता मिलती है। रूप और विस्तार में गैलेक्सी बहुत सी अगांग (एक्स्ट्रा गैलक्टिक) नीहारिकाओं से (अर्थात उन गैलेक्सियों से जो हमारी गैलेक्सी से पूर्णतया बाहर हैं) मिलती जुलती हैं।
 
== संदर्भसन्दर्भ ==
<references />