"महाबोधि विहार": अवतरणों में अंतर

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माना जाता है कि बुद्ध ने मुख्‍य मंदिर के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्‍ित के बाद पांचवा सप्‍ताह व्‍य‍तीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्‍ताह महाबोधि मंदिर के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्‍यतीत किया था। यह क्षील चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। इस क्षील के मध्‍य में बुद्ध की मूर्त्ति स्‍थापित है। इस मूर्त्ति में एक विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। इस मूर्त्ति के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार बुद्ध प्रार्थना में इतने तल्‍लीन थे कि उन्‍हें आंधी आने का ध्‍यान नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा अपने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की।
 
इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृ‍क्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद अपना सांतवा सप्‍ताह इसी वृक्ष के नीचे व्‍यतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्‍या‍पारियों से मिले थे। इन व्‍यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। इन प्रार्थना के रुपरूप में बुद्धमं शरणम गच्‍छामि (मैं अपने को भगवान बुद्ध को सौंपता हू) का उच्‍चारण किया। इसी के बाद से यह प्रार्थना प्रसिद्ध हो गई।
 
=== तिब्‍बतियन मठ ===
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नालन्‍दा से 5 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध जैन तीर्थस्‍थल पावापुरी स्थित है। यह स्‍थल भगवान महावीर से संबंधित है। यहां महावीर एक भव्‍य मंदिर है। नालन्‍दा-राजगीर आने पर इसे जरुर घूमना चाहिए।
 
नालन्‍दा से ही सटा शहर बिहार शरीफ है। मध्‍यकाल में इसका नाम ओदन्‍तपुरी था। वर्तमान में यह स्‍थान मुस्लिम तीर्थस्‍थल के रुपरूप में प्रसिद्ध है। यहां मुस्लिमों का एक भव्‍य मस्जिद बड़ी दरगाह है। बड़ी दरगाह के नजदीक लगने वाला रोशनी मेला मुस्लिम जगत में काफी प्रसिद्ध है। बिहार शरीफ घूमने आने वाले को मनीराम का अखाड़ा भी अवश्‍य घूमना चाहिए। स्‍थानीय लोगों का मानना है अगर यहां सच्‍चे दिल से कोई मन्‍नत मांगी जाए तो वह जरुर पूरी होती है।
 
== आवागमन ==