"यजुर्वेद": अवतरणों में अंतर
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==नाम और विषय==
यजुस के नाम पर ही वेद का नाम '''यजुस'''+'''वेद'''(=यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है। यज् का अर्थ समर्पण से होता
इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं, अतःयह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है। यजुर्वेद की संहिताएं लगभग अंतिम रची गई संहिताएं थीं, जो ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दि से प्रथम सहस्राब्दी के आरंभिक सदियों में लिखी गईं थी।<ref name="भारत कोष"/> इस ग्रन्थ से [[आर्य|आर्यों]] के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। उनके समय की वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है। यजुर्वेद संहिता में वैदिक काल के धर्म के कर्मकाण्ड आयोजन हेतु यज्ञ करने के लिये मंत्रों का संग्रह है।
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: '''अर्थ-'''
: ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म
: क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी ॥
: होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व
: आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही ॥
: बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र
: इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें ॥
: फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ
: हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी ॥
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