"राहुल देव बर्मन": अवतरणों में अंतर

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उनके द्वारा बनाए गए संगीत उनके पिता एस डी बर्मन के संगीत की शैली से काफ़ी अलग थे। आर डी वर्मन हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय संगीत को एक अलग पहचान मिलती थी। लेकिन उनके पिता सचिन देव बर्मन को पाश्चात्य संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था।
 
आर डी बर्मन ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रुपरूप में की। शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे। उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा।उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था.
 
संगीतकार के रूप में आर डी बर्मन की पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1961) थी जबकि पहली सफल फिल्म [[तीसरी मंजिल]] (1966) थी।
 
सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। उन्होंने [[लता मंगेशकर]] , [[आशा भोसले]], [[मोहम्मद रफी]] और [[किशोर कुमार]] जैसे बड़े कलाकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें [[कटी पतंग]] काफी सफल रही। यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रुपरूप में काफी सफल हुए। बाद में [[यादों की बारात]], हीरा पन्ना , अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' रही। वर्ष 1994 में इस महान संगीतकार का देहांत हो गया।
 
आर डी वर्मन ने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया। आज के युग के लोग भी उनके संगीत को पसंद करते हैं। आज भी फिल्म उद्योग में उनके संगीत को बखूबी इस्तमाल किया जाता है।