[[चित्र:EranVidishaCoin.jpg|thumb|]] [[विदिशा]] [[भारतवर्ष]] के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है, जो [[हिंदू]] तथा [[जैन]] धर्म के समृद्ध केन्द्र के रुपरूप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। [[महिष्मती]] ([[महेश्वर]]) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी [[मालवा]] की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है।
== प्राचीन इतिहास ==
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पुराणों में इसकी चर्चा [[भद्रावती]] या [[भद्रावतीपुरम्]] के रुपरूप में है। जैन- ग्रंथों में इसका नाम भड्डलपुर या [[भद्दिलपुर]] मिलता है। मध्ययुग आते- आते इसका नाम सूर्य (भैलास्वामीन) के नाम पर भेल्लि स्वामिन, भेलसानी या [[भेलसा]] हो गया। संभवतः पढ़ने के क्रम में हुई किसी गलतफहमी के कारण ११ शताब्दी में अलबरुनी ने इसे "महावलिस्तान' के नाम से संबोधित किया है। १७ वीं सदी में औरंगजेब के शासन काल में इसका नाम आलमगीरपुर रखा गया। सन् १९४७ ई. तक सरकारी रिकॉडाç में इसे "परगणे आलमगीरपुर' लिखा जाता रहा। परंतु ब्रिटिश काल में लोगों में भेलस्वामी या भेलसा नाम ही प्रचलित रहा। बाद में सन् १९५२ ई. में जनआग्रह पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा इस स्थान का तत्कालीन पुराना नाम विदिशा घोषित कर दिया।