"वैदिक धर्म": अवतरणों में अंतर

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=== ब्रह्मयज्ञ ===
ब्रह्मयज्ञका अर्थ है गुरुमुखसे अनुवचन कीया हुआ वेद-श्रुति (मन्त्रब्राह्मणात्मक) वेदभागको नित्य विधिवत् पाठ करनाकरना। पाठमे असमर्थसे वैदिक मंत्रोंका जप करना भी अनुकल्प विधिसे ब्रह्मयज्ञ ही है। ब्राह्मण वेदोंके जिस् यज्ञ-अनुष्ठानका प्रसंगवाला भाग नित्य पाठ करता है उसी यज्ञका फल प्राप्त करता है। प्राचीन कालमे जिसने वेदानुवचन कीया है वह प्रतिदिन शुक्लपक्षमे मन्त्रब्राह्मणात्मक वेदभाग और कृष्णपक्षमे वेदांग-कल्प,व्याकरण,निरुक्त,शिक्षा,छन्द और ज्योतिष पाठ करता था | प्रार्थना और यज्ञसे सम्बन्ध रख्नेवाला यजमान और पुरोहित- ऋत्विक् वा आचार्य सदाचारी(वेदोक्त वर्णाश्रमधर्मका पालक)होना चाहिए। नहीं तो उसकी पूजा-प्रार्थना वा यज्ञ का कोई अर्थ नहीं है। पुराणौंमे कहा भी है- आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः यद्यप्यधीता सहषड्भिरंगैः ....| सदाचारी लोग ही तरते हैं, दुराचारी नहीं।
 
ऋग्वेद में कहा है :-