"शारदा देवी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nahabat of Dakshineswar Kali Temple.jpg|thumb|right |दक्षिणेश्वर स्थित नहबत का दक्षिणी भाग, सारदा देवी यहाँ एक छोटे से कमरे में रहती थीं]]
अठारह वर्ष की उम्र में वे अपने पति रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर पहुँची। रामकृष्ण इस समय कठिन आध्यात्मिक साधना में बारह बर्ष से ज्यादा समय व्यतीत कर चुके थे और आत्मसाक्षात्कार के सर्बोच्च स्तर को प्राप्त कर लिया था। उन्होने बड़े प्यार से सारदा देवी का स्वागत कर उन्हे सहज रूप से ग्रहण किया और गृहस्थी के साथ साथ आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की शिक्षा भी दी। सारदा देवी पवित्र जीवन व्यतीत करते हुए एवं रामकृष्ण की शिष्या की तरह आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हुए अपने दैनिक दायित्व का निर्वाह करने लगीं।
रामकृष्ण सारदा को जगन्माता के रुपरूप में देखते थे। 1872 ई. के फलाहारीणी [[काली]] पूजा की रात को उन्होने सारदा की जगन्माता के रुपरूप में पूजा की।
दक्षिणेश्वर में आनेवाले शिष्य भक्तों को सारदा देवी अपने बच्चों के रुपरूप में देखती थीं और उनकी बच्चों के समान देखभाल करती थीं।
 
सारदा देवी का दिन प्रातः ३:०० बजे शुरू होता था। गंगास्नान के बाद वे [[जप]] और [[ध्यान]] करती थीं। रामकृष्ण ने उन्हें दिव्य मंत्र सिखाये थे और लोगो को दीक्षा देने और उन्हें आध्यात्मिक जीवन में मार्गदर्शन देने हेतु ज़रूरी सुचना भी दी थी। सारदा देवी को श्री रामकृष्ण की प्रथम शिष्या के रूप में देखा जाता हैं। अपने ध्यान में दिए समय के अलावा वे बाकी समय रामकृष्ण और भक्तो (जिनकी संख्या बढ़ती जा रही थी ) के लिए भोजन बनाने में व्यतीत करती थीं।
 
=== संघ माता के रुपरूप में ===
 
1886 ई. में रामकृष्ण के देहान्त के बाद सारदा देवी तीर्थ दर्शन करने चली गयीं। वहाँ से लौटने के बाद वे कामारपुकूर मे रहने आ गयीं। पर वहाँ पर उनकी उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण भक्तों के अत्यन्त आग्रह पर वे कामारपुकुर छोड़कर [[कलकत्ता]] आ गयीं।