"शिव कुमार बटालवी": अवतरणों में अंतर

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छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
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जित्थे मोए बाद भी , कफ़न नहीं होया नसीबनसीब।
कौन पागल हुण करे , ऐतबार तेरे शहर दादा। ।।
 
ऐथे मेरी लाश तक , नीलाम कर दित्ती गयीगयी।
लत्थेया कर्जा ना, फेर भी यार तेरे शहर दादा। ।।
 
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