"सातवाहन": अवतरणों में अंतर

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=== कान्हा तथा कृष्ण (212ई0पू0 - 195ई0पू0)===
सिमुक की मृत्यु के पश्चात उसका छोटा भाई कान्हा (कृष्ण) राजगद्दी पर बैठा। अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में कान्हा ने साम्राज्य विसतार की नीति को अपनाया। नासिक के शिलालेख से यह पता चलता है कि कान्हा के समय में सातवाहन साम्राज्य पश्चिम में नासिक तक फैल गया था। शातकर्णी-प् (प्रथम) कान्हा के उपरान्त शातकर्णी प्रथम गद्दी पर बैठा। पुराणों के अनुसार वह कान्हा पुत्र था। परन्तु डॉ॰ गोपालचारी सिमुक को शातकर्णी प्रथम का पिता मानते हैं। कुछ विद्वानों ने यह माना है कि इसका शासन काल मात्रा दो वर्ष रहा परन्तु नीलकण्ठ शास्त्री ने उसका शासन काल 194 ई0पू0 से लेकर 185 ई0पू0 माना है। जो भी हो यह सुस्पष्ट है कि उसका शासन काल बहुत लम्बा नही था। परन्तु छोटा होते हुए भी शातकर्णी प्रथम का कार्यकाल कुछ दृष्टिकोणों से बड़ा महत्वपूर्ण है। सातवाहन शासकों में वह पहला था जिसने इस वंश के शासकों में प्रिय एवं प्रचलित, ‘‘शातकर्णी’’ शब्द से अपना नामकरण किया। नानाघाट शिलालेख के अनुसार शातकर्णी ने अपने साम्राज्य का खुब विस्तार किया तथा अपने कार्य काल में दो अश्वमेघ यज्ञ तथा एक राजसुय यज्ञ किया। उसकी रानी नयनिका के एक शिलालेख से हमें यह ज्ञात होता है कि शातकर्णी प्रथम ने पश्चिमी मालवा के साथ-साथ अनुप (नर्मदा घाटी का क्षेत्र) तथा विदर्भ (बरार) प्रदेशों भी जीत लिया। यदि शातकर्णी प्रथम ही वह शासक है जिसका उल्लेख सांची स्तूप के तोरण में हुआ है तो यह भी इस बात को प्रमाणित करता है कि उसके समय में मध्य भारत सातवाहनों के अधिकार में था। वह अपने छाटे से कार्य काल मे सम्राट बन गया तथा उसने दक्षिण पथपति तथा अप्रतिहत चक्र आदि उपाधियाँ धारण की। नानाघाट लेख तथा हाथी गुम्फा लेखों में प्रयुक्त लिपि की समानता के आधार पर ही यह सुझाया गया है कि कदाचित इसी शातकर्णी शासकों के शासन काल के दूसरे वर्ष में कलिंग के महान शासक खारखेल ने युद्ध क्षेत्र में हराया था। शातकर्णी प्रथम की पत्निपत्नी नयनिका अथवा नागनिका अंगीय कुल के एक महारथी त्रणकाइरो की पुत्री थी।
 
=== वेदश्री तथा सतश्री (अथवा शक्ति श्री)===
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हाल सातवाहनों का अगला महत्पूर्ण शासक था। यद्यपि उसने केवल चार वर्ष ही शासन किया तथापि कुछ विषयों उसका शासन काल बहुत महत्वपूर्ण रहा। ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान था तो हाल शांतिदूत के रूप में अग्रणी था। हाल साहित्यिक अभिरूचि भी रखता था तथा एक कवि सम्राट के रूप में प्रख्यात हुआ। उसके नाम का उल्लेख पुराण, लीलावती, सप्तशती, अभिधान चिन्तामणि आदि ग्रन्थों में हुआ है। यह माना जाता है कि प्राकृत भाषा में लिखी गाथा सप्तशती अथवा सतसई (सात सौ श्लोकों से पूर्ण) का रचियता हाल ही था। बृहदकथा के लेखक गुणाढ्य भी हाल का समकालीन था तथा कदाचित पैशाची भाषा में लिखी इस पुस्तक की रचना उसने हाल ही के संरक्षण में की थी। कालानतर में बुद्धस्वामी की बृहदकथा‘यलोक-संग्रह, [[क्षेमेन्द्र]] की बृहदकथा-मंजरी तथा [[सोमदेव]] की [[कथासरितसागर]] नामक तीन ग्रन्थों की उत्पति [[गुणाढ्य]] की [[बृहदकथा]] से ही हुई।
 
हाल के प्रधान सेनापति विजयानन्द ने अपने स्वामी के आदेशानुसार [[श्रीलंका]] पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस विजय अभियान से वापिस लौटते समय वह कुछ समय के लिये सप्त गोदावरी भीमम् नामक स्थान पर रूका। वहाँ विजयानन्द ने श्रीलंका के राजा की अति रूपवान पुत्री लीलावती की चर्चा सुनी जिसका वर्णन उसने अपने राजा हाल से किया। हाल ने प्रयास कर लीलावती से विवाह कर लिया। किवदंती है कि हाल ने पूर्वी दक्कन में कुछ सैनिक अभियान किये परन्तु साक्ष्यों के अभाव में अधिकतर विद्वान इसे गलत मानते हैं। यद्यपि हाल तक के सातवाहन शासकों के शासनकाल में राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त साहित्यिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक विकास हुआ तथा व्यपार-वाणिज्य शहरों के विकास एवं जलपरिवहन की उन्नति हुई जो कि प्रथम शताब्दी ई0 के दूसरे मुण्डलक अथवा पुरिद्रंसेन के शासन काल में अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गई, तथापि आने वाले लगभग पचास वर्ष सातवाहन साम्राज्य के लिए बड़े ही कठिन साबित हुए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो के [[पश्चिमी क्षत्रप|पश्चिम क्षत्रपों]] के रूप में हुए विदेशी आक्रमण के साथ ही सातवाहन साम्राज्य का पतन होने को है। कुषाण उत्तर-पश्चिम में अपना प्रसार कर रहे थे तथा उनके दबाव में शक तथा पहलाव शासक मध्य तथा पश्चिमी भारत की ओर आकर्षित होकर सातवाहनों से संघर्ष करने को आतुर थे। क्षहरात वंश के पश्चिमी क्षत्रपों ने अपने को पश्चिमा राजपुताना, गुजरात तथा काठियावाड़ में स्थापित कर लिया था। इन शक शासकों ने 35 ई0 से लेकर लगभग 90ई0 तक सातवाहन राज्य पर आक्रमण किये। उन्होंने सातवाहनों से पूर्वी तथा पयिचमा मालवा प्रदेशों को जीता; उत्तरी कोंकण (अपरान्त) उत्तरी महाराष्ट्र, जो कि सातवाहन शक्ति का केन्द्र था तथा बनवासी (वैजयन्ती) तक फैले दक्षिणी महाराष्ट्र पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। क्षहरात वंश का पहला शासक घूमक था जिसकी जानकारी के स्त्रोतस्रोत कुछ सिक्कें है जो कि अधिकांशतः गुजरात काठियावाड़ के तटीय प्रदेश तथा यदाकदा मालवा से पाए हैं। घूमक का उत्तराधिकारी नहपान था जिसकी जानकारी हमें उसके बहुसंख्य सिक्कों पर राजा (अथवा राजन्) की उपाधि धारण की है। वहीं शिलालेखों उसकी उपाधि क्षत्रप तथा महाक्षत्रप मिली। नासिक, कारले तथा जुनार (उत्तरी महाराष्ट्र) के उसके शिलालेख; एसके बहुसंख्य सिक्कें तथा उसके जामाता शक अशवदात के द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में दिए गए दान सब के सब ये प्रमाणित करते हैं कि नहपान के समय में क्षहरात वंश का साम्राज्य काफी विस्तुत था तथा उसने सातवाहन शासकों से काफी बड़ा प्रदेश छीन कर ही अपने साम्राज्य को इतना विशाल बनाया था। नहपान तथा उसके जामाता शक अशवदत ने मालवा, नर्मदा घाटी, उत्तरी कोंकण, बरार का पश्चिमा भाग एवं और दक्षिणी महाराष्ट्र को जीतकर पश्चिमी दक्कन में सातवाहन शक्ति को ल्रभ्र उखाड़ फैंका। वे सातवाहन राजा जो नहपान के हाथों पराजित हुए कदाचित सुन्दर शातकर्णी, चकोर शातकर्णी तथा शिवसाती थे जिनका कि कार्यकाल बहुत ही छोटा था (इनमें से पहले दो का शासन काल मात्रा डेढ़ वर्ष था) परन्तु यह परिस्थितियां अधिक समय तक नही चली तथा गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के सातवाहन शासक बनते ही इस क्षहरात-सातवाहन संघर्ष में नया मोड़ आया।
 
== गौतमी पुत्रा श्री शातकर्णी (70ई0-95ई0)==