"सूर्य नारायण व्यास": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: वर्तनी सुधार।
छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
पंक्ति 8:
 
पं. सूर्यनारायण व्यास अठारह बरस या उससे भी कम आयु में रचबा करने लगे थे। [[सिद्धनाथ माधव आगरकर]] का साहचर्य उन्हें किशोरावस्था में ही मिल गया था, लोकमान्य तिलक की जीवनी का अनुवाद उन्होंने आगरकरजी के साथ किया। सिद्धनाथ माधव आगरकर को बहुत लोग अब भूल गये हैं ! ‘स्वराज्य’ सम्पादक, (‘कर्मवीर’ के पहले सम्पादक भी आगरकर जी ही थे जिसे [[माखनलाल चतुर्वेदी]] ने बाद में सँभाला) का पण्डितजी को अन्तरंग साहचर्य मिला और शायद इसी वजह से वे [[पत्रकारिता]] की ओर प्रवत्त हुए।
तिलक की जीवनी का अनुवाद करते-करते वे क्रान्तिकारी बने ; [[वीर सावरकर]] का साहित्य पढ़ा ; सावरकर की कृति '''अण्डमान की गूँज''' (Echo from Andaman) ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। प्रणवीर पुस्तकमाला की अनेक ज़ब्तशुदा पुस्तकें वे नौजवानों में गुप्त रुपरूप से वितरित किया करते थे। वर्ष 1920-21 के काल से तो उनकी अनेक क्रान्तिकारी रचनाएँ प्राप्त होती हैं जो-मालव मयूर, वाणी, सुधा, आज, (बनारस) [[सरस्वती]], [[चाँद (पत्रिका)|चाँद]], माधुरी, [[अभ्युदय]] और [[स्वराज्य]] तथा [[कर्मवीर]] में बिखरी पड़ी हैं। वे अनेक ‘छद्म’ नामों से लिखते थे, मसलन-खग, एक मध्य भारतीय, मालव-सुत, डॉ॰ चक्रधर शरण, डॉ॰ एकान्त बिहारी, व्यासाचार्य, सूर्य-चन्द्र, एक मध्य भारतीय आत्मा जैसे अनेक नामों से वे बराबर लिखते रहते थे। 1930 में अजमेर सत्याग्रह में पिकेटिंग करने पहुँचे, मालवा के जत्थों का नेतृत्व भी किया, [[सुभाषा चन्द्र बोस|सुभाष बाबू]] के आह्वान पर अजमेर में लॉर्ड मेयो का स्टैच्यू तोड़ा और बाद के काल में वर्ष 1942 में ‘भारती-भवन’ से गुप्त रेडियो स्टेशन का संचालन भी किया जिसके कारण वर्ष 1946 में उन्हें [[इण्डियन डिफ़ेन्स ऐक्ट]] के तहत जेल-यातना का पुरस्कार भी मिला। आज़ादी के बाद पेंशन और पुरस्कार की सूची बनी तो उसमें उन्होंने तनिक भी रुचि नहीं ली।
{{१९५८ पद्म भूषण}}