"खेड़ा सत्याग्रह": अवतरणों में अंतर
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== इतिहास ==
सन् 1918 ई. में गुजरात जिले की पूरे साल की फसल मारी गई। किसानों की दृष्टि में फसल चौथाई भी नहीं हुई थी। स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार न थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गई तब महात्मा गांधी ने उन्हें सत्याग्रह करने की सलाह दी और लोगों से स्वयंसेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की। गांधी जी की अपील पर [[वल्लभभाई पटेल]] अपनी खासी चलती हुई वकालत छोड़ कर सामने आए। यह उनके सार्वजनिक जीवन का श्रीगणेश था। उन्होंने गाँव-गाँव घूम-घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया कि वे अपने को झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबर्दस्ती बढ़ाया हुआ कर देने की अपेक्षा अपनी भूमि को जब्त कराने के लिये तैयार हैं। निदान सरकार की ओर से कर की अदायगी के लिए किसानों के मवेशी तथा अन्य
सरकार को अपनी भूल का अनुभव हुआ पर उसे वह खुल कर स्वीकार नहीं करना चाहती थी अत: उसने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी। सरकार ने यह कार्य बहुत देर से और बेमन से किया और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न होने पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुककर किसी प्रकार का कोई समझौता किया है। इससे किसानों को अधिक लाभ तो न हुआ पर उनकी नैतिक विजय अवश्य हुई।
==इन्हें भी देखें==
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