"आलोचना": अवतरणों में अंतर

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'''आलोचना''' या '''समालोचना''' (Criticism) किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण-दोषों एवं उपयुक्ततता का विवेचन करने वालि साहित्यिक विधा है। हिंदी आलोचना की शुरुआत १९वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेंदु युग से ही मानी जाती है। समालोचना' का शाब्दिक अर्थ है - 'अच्छी तरह देखना'।
 
आलोचना शब्द 'लुच' धातु से बना है। 'लुच' का अर्थ है 'देखना'. समीक्षा और समालोचना शब्दों का भी यही अर्थ है। [[अंग्रेजी]] के 'क्रिटिसिज्म' शब्द के समानार्थी रूप में 'आलोचना' का व्यवहार होता है। संस्कृत में प्रचलित 'टीका-व्याख्या' और काव्य-सिद्धान्तनिरूपण के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि आधुनिक आलोचना, [[संस्कृत]] के काव्य-सिद्धान्तनिरूपण से स्वतंत्र चीज़ है। आलोचना का कार्य है किसी साहित्यक रचना की अच्छी तरह परीक्षा करके उसके रूप, गणु और अर्थव्यस्था का निर्धारण करना।
 
डॉक्टर [[श्यामसुन्दर दास]] ने आलोचना की परिभाषा इन शब्दों में दी है:
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== आलोचना के प्रकार ==
आलोचना करते समय जिन मान्यताओं और पद्धतियों को स्वीकार किया जाता है, उनके अनुसार आलोचना केप्रकार विकसित हो जाते हैं। सामान्यत: समीक्षा के चार प्रकारों को स्वीकार किया गया है:-
# सैद्धान्तिक आलोचना
# निर्णयात्मक आलोचना
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=== सैद्धान्तिक आलोचना ===
सैद्धान्तिक आलोचना में साहित्य के सिद्धान्तों पर विचार होता है। इसमें प्राचीन शास्त्रीय काव्यागों - रस, अलंकार आदि और साहित्य की आधुनिक मान्यताओं तथा नियमों की मुख्य रूप से विवचेना की जाती है। सैद्धान्तिक आलोचना में विचार का बिन्दुयह हैͩक साहित्य का मानदंड शास्त्रीय है या ऐतिहासिक. मानदंड का शास्त्रीय रूप, स्थिर और अपरिवर्तनशील होता है किन्तु मानदंडों को ऐतिहासिक श्रेणी माननेपर उनका स्वरूप परिवर्तनशील और विकासात्मक होता है। दोनों प्रकार की सैद्धान्तिक आलोचनाएँ उपलब्ध हैं। किन्तु अब उसी सैद्धान्तिक आलोचना का महत्त्व अधिक है जो साहित्य के तत्वों और नियमों की ऐतिहासिक प्रक्रिया में विकासमान मानती है।
 
=== निर्णयात्मक आलोचना ===