"वेणीसंहार": अवतरणों में अंतर

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'''वेणीसंहारम्''', [[भट्टनारायण]] द्वारा रचित प्रसिद्ध [[संस्कृत]] [[नाटक]] है। भट्टनारायण ने [[महाभारत]] को 'वेणीसंहार' का आधार बनाया है। 'वेणी' का अर्थ है, स्त्रयोंस्त्रियों का [[केश]] अर्थात् 'चोटी' और 'संहार' का अर्थ है सजाना, व्यवस्थित करना या, गुंफन करना। वेणीसंहार नाटक को नाटयकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और भटटनारायण को एक सफल नाटककार के रूप में स्मरण किया जाता है। [[नाट्यशास्त्र]] की नियमावली का विधिवत पालन करने के कारण नाटयशास्त्र के आचार्यों ने भटटनारायण को बहुत महत्त्व दिया है।
 
[[दुःशासन]], [[द्रौपदी]] के खुले हुए केश पकड़ के बलपूर्वक घसीटता हुआ द्युतसभा में लाता है, तभी द्रौपदी प्रतिज्ञा करती है कि जबतक दुःशासन के रक्त से अपने बालो को भिगोएगी नहीं तब तक अपने बाल ऐसे ही बिखरे हुए रखेगी। भट्टनारायण रचित इस नाटक के अंत में [[भीम]] दुःशासन का वध करके उसका रक्त द्रौपदी के खुले केश में लगाते हैं और चोटी का गुंफन करते हैं। इसी प्रसंग के आधार भट्ट नारायण ने इस नाटक का शीर्षक 'वेणीसंहार' रखा है।