"कहरुवा": अवतरणों में अंतर

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ऐंबर में ३ से ४ प्रतिशत तक (मेघाभ नमूने में ८ प्रति शत तक) [[सकसिनिक अम्ल]] रहता है। ऐंबर का संगठन जानने के प्रयास में इससे दो अम्ल C<sub>20</sub>H<sub>30</sub>O<sub>4</sub> सूत्र के, पृथक किए गए हैं, परंतु इन अम्लों के संगठन का अभी ठीक ठीक पता नहीं लगा है।
 
गरम करने से ऐंबर का लगभग १५० डिग्री सें. ताप पर कोमल होना आरंभ होता है और तब इससे एक विशेष गंध निकलती है। फिर ३०० डिग्री-३७५ डिग्री सें. के ताप पर पिघलता और इससे घना सफेद धुआँ निकलता है जिसमें सौरभ होता है। इससे फिर तेल निकलता है जिसे 'ऐंबर का तेल' कहते हैं।
 
ऐंबर के बड़े बड़े टुकड़ों से मनका आदि बनता है। छोटे छोटे और अशुद्ध टुकड़ों को पिघलाकर ऐंबर वार्निश बनाते हैं। छोटे छोटे टुकड़ों को तो अब उष्मा और दबाव से 'ऐंब्रायड' में परिणत करते हैं। आजकल प्रति वर्ष लगभग ३०,००० किलोग्राम ऐंब्रायड बनता है। यह ऐंबर से सस्ता बिकता है और ऐंबर के स्थान में बहुधा इसी का उपयोग होता है। ऐंबर के सामान जर्मनी और आस्ट्रिया में अधिक बनते हैं।