"कामन्दकीय नीतिसार": अवतरणों में अंतर
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नीतिसार के आरम्भ में ही विष्णुगुप्त चाणक्य की प्रशंशा की गयी है-
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== रचनाकाल ==
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{| class="wikitable"
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| '''प्रथम सर्ग'''
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| '''द्वितीय सर्ग'''
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| '''तृतीय सर्ग'''
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| '''चौथा सर्ग'''
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| '''पाँचवाँ सर्ग'''
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| '''छठा सर्ग'''
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| '''सातवाँ सर्ग'''
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| '''आठवें से ग्यारहवाँ सर्ग'''
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| '''बारहवाँ सर्ग'''
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| '''तेरहवाँ सर्ग'''
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| '''चौदहवाँ सर्ग'''
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| '''पन्द्रहवाँ सर्ग'''
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| '''सोलहवाँ सर्ग'''
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| '''सत्रहवाँ सर्ग'''
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| '''अट्ठारहवाँ सर्ग'''
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| '''उन्नीसवाँ सर्ग'''
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| '''बीसवाँ सर्ग'''
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==कौटिल्य का अर्थशस्त्र तथा कामन्दकीय नीतिसार==
कौटिल्य ने राजा और राज्य विस्तार के लिये
कौटिल्य जहां विजय के लिये साम, दाम, दंड और भेद की नीति को श्रेष्ठ बताते हैं, वे माया, उपेक्षा और इंद्रजाल में भरोसा रखते हैं वहीं नीतिसार मंत्रणा शक्ति, प्रभु शक्ति और उत्साह शक्ति की बात करती है। इस में राजा के लिये राज्यविस्तार की कोई कामना नहीं है जबकि अर्थशास्त्र राज्य विस्तार और राष्ट्र की एकजुटता के लिये हर प्रकार की नीति का समर्थन करता है।
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== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.dli.gov.in/cgi-bin/metainfo.cgi?&title1=nitisara%20of%20kamandaka&author1=sastri,%20t.%20ganapati&subject1=sanskrit%20literature&year=1912%20&language1=sanskrit&pages=350&barcode=99999990039282&author2=&identifier1=&publisher1=the%20travancore%20government%20press&contributor1=&vendor1=NONE&scanningcentre1=&scannerno1=&digitalrepublisher1=&digitalpublicationdate1=0000-00-00&numberedpages1=&unnumberedpages1=&rights1=OUT_OF_COPYRIGHT©rightowner1=©rightexpirydate1=&format1=tagged%20image%20file%20format%20&url=/data8/upload/0236/565 कमन्दक नीतिसार] (भारतीय अंकीय पुस्तकालय ; प्रकाशक - टी गणपति शास्त्री)
*[http://documents.tips/documents/tss-014-niti-sara-of-kamandaka-ganapati-sastri-1912.html
*[https://ia601501.us.archive.org/35/items/Bibliotheca_Indica_Series/KamandakiyaNitisaraWithTika-RamanarayanaVidyaratnaRlMitra1884bis.pdf कामन्दकीय नीतिसारः] (रामनारायण विद्यारत्न मित्र)
*[http://dli.serc.iisc.ernet.in/bitstream/handle/2015/344854/The-Elements.pdf?sequence=1&isAllowed=y कामन्दकीय नीतिसारः] (रामनारायण विद्यारत्न मित्र)
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