"किशोरीदास वाजपेयी": अवतरणों में अंतर

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== जीवन चरित ==
हिन्दी के इस महान प्रणेता का जन्म १५ दिसम्बर १८९५ में [[कानपुर]] के [[बिठूर]] के पास मंधना क्षेत्र के रामनगर नामक गाँव में हुआ। आपने प्राथमिक शिक्षा गाँव में और फिर [[संस्कृत]] की शिक्षा [[वृन्दावन]] में ली, तत्पश्चात् [[बनारस]] से प्रथमा की परीक्षा और फिर [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से विशारद एवं शास्त्री की परीक्षाएँ ससम्मान उत्तीर्ण कीं। इसके बाद [[सोलन]] में ([[हिमाचल प्रदेश]]) अपना अध्यापकीय जीवन प्रारम्भ किया। संस्कृत के आचार्य होते हुए भी, हिन्दी में भाषा परिष्कार की आवश्यकता देखते हुए, संस्कृत का क्षेत्र छोड़ हिन्दी का क्षेत्र स्वीकार किया। इसके लिये उन्होंने "[[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]]' ([[इलाहाबाद]]) से हिन्दी की विशारद एवं उत्तमा (साहित्य रत्न) की परीक्षाएँ दीं।
 
बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के [[व्याकरण]] क्षेत्र को विभूषित किया अपितु [[आलोचना]] क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा। आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये। साहित्याचार्य [[शालिग्रम शास्त्री]] जी की ''[[साहित्य दर्पण]]'' में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने [[माधुरी]] में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली। इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे। इसके बाद "माधुरी" में प्रकाशित "[[बिहारी सतसई]] और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए।