"कुलथी": अवतरणों में अंतर
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हिंदी में कुलथी, कुलथ, खरथी, गराहट | संस्कृत में कुलत्थिका, कुलत्थ | गुजराती में कुलथी | मराठी में डूलगा, कुलिथ तथा अंग्रेजी में हार्स ग्राम इत्यादि नामों से जाना जाता है।
कुलथी कषायरशयुक्त, विपाक में कटुरसयुक्त, पित्त एवं रक्त विकार नाशक, उष्णवीर्य, पसीने को रोकने वाली, सारक एवं- श्वास, कास, कफ, वायु, हिचकी, पथरी, शुक्र, दाह, पीनस, मेद, ज्वर तथा कृमि को दूर करने वाली है।
इसका क्षुप झाड़ीदार, पतला, धूसर, ३० से ४५ से. मी. ऊँचा एवं मूल से अनेक शाखाओं से युक्त होता है। इसके पत्ते बिल्व की तरह त्रिपत्रक एवं लम्बे वृन्तयुक्त पीताभ हरे होते हैं। इसके बीज देखने में उड़द के समान, हल्के लाल, काले चितकबरे, चिपटे एवं चमकीले होते हैं।
===रसायनिक संगठन===
बीजों में प्रोटीन २२, स्नेह ०.५, खनिज ३.१, रेशा ५.३, कार्बोहाइड्रेट ५७.३, खटिक ०.२८, फास्फोरस ०.३९%, लोह ७.६ मि.ग्रा एवं विटामिन 'ए' ११९ एकक प्रति १०० ग्राम में पाया जाता है। इसमें यूरिएस (Urease) काफी होता है।
==गुण और प्रयोग==
यह उष्ण, मूत्रल, वात-कफनाशक, मेदहर एवं अश्मरीघ्न है। इसका क्वाथ अश्मरी, श्वास, कास एवं श्वेत प्रदर में दिया जाता है।
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एक सरल व्यायाम
एक लकड़ी के तख्त पर चढ़ जाएं, फिर जमीन पर कूदें। चढें और कूदें। यह क्रिया ८-१० बार करें। इस क्रिया के करने से पथरी नीचे खिसकेगी और पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाएगी।
नोट: शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
== प्रभाव ==
o कुलथी के सेवन से पथरी टूट कर या धुल कर छोटी होती है, जिससे पथरी सरलता से मूत्राशय में जाकर पेशाब के रास्ते से बाहर आ जाती है। मत्रल गुण होने के कारण इसके सेवन से पेशाब की मात्रा और गति बढ़ जाती है, जिससे रुके हुए पथरी कण पर दबाव ज्यादा पड़ने के कारण वह नीचे की ओर खिसक कर बाहर हो जाती है।
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