"कृंतक": अवतरणों में अंतर
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== लाक्षणिक विशेषताएँ ==
कृंतकों की प्रमुख लाक्षणिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. इनमें श्वदंतों (Canines) तथा अगले प्रचर्वण दंतों की अनुपस्थिति के कारण दंतावकाश (Diastema) पर्याप्त विस्तृत होता है।
2. केवल चार कर्तनक दंत (Incisors) होते है-दो ऊपर वाले जबड़े में और दो नीचेवाले जबड़े में। दाँत लंबे तथा पुष्ट होते हैं और आजीवन बराबर बढ़ते रहते हैं। इनमें इनैमल (Enamel) मुख्य रूप से अगले सीमांत पर ही सीमित रहता है, जिससे ये घिसकर छेनी सरीखे हो जाते हैं और व्यवहार में आते रहने के कारण आप ही आप तीक्ष्ण भी होते रहते हैं। कुतरने के लिए इस रीति के विकास के अतिरिक्त कृंतक स्तनधारी ही कहे जा सकते हैं।
3. अधिकांश स्तनधारी अपना भोजन मनुष्य के समान चबाते हैं। चबाते समय निचला जबड़ा मुख्य रूप से ऊपर की दिशा में ही गति करता है। कृंतकों में इसके विपरीत चर्वण की क्रिया निचले जबड़े की आगे पीछे की दिशा में होनेवाली गति के परिणामस्वरूप होती है। इस प्रकार की गति के लिए हनुपेशियाँ बलशाली तथा जटिल होती है।
4. अन्य शाकाहारी प्राणियों के सदृश कृंतकों के आहारमार्ग में सीकम (Caecum) बहुत बड़ा होता है, परंतु अमाशय का विभाजन केवल मूषकों में ही देखने को मिलता है। इसमें हृदय की ओर वाले भाग में श्रैंगिक आस्तर चढ़ा होता है।
5. मस्तिष्कपिंड चिकना होता है, जिसमें खाँचे (Furrows) बहुत कम होते हैं। फलत: इनकी मेधाशक्ति अधिक नहीं होती।
6. वृषण साधारणतया उदरस्थ होते हैं।
7. गर्भाशय प्राय: दोहरा होता है।
8. देखने में प्लासेंटा (Placenta) विविधरूपी होता हैं, किंतु प्राय: बिंबाभी (discoidal) तथा शोणगर्भवेष्टित (haemochorial) ढंग का होता है।
9. कुछ कृंतकों की गर्भाविधि केवल १२ दिन की होती है।▼
▲9. कुछ कृंतकों की गर्भाविधि केवल १२ दिन की होती है।
10. कुहनी संधि (Elbowjoint) चारों ओर घूम सकती है।
11. चारों हाथ पैर नखरयुक्त (clawed) होते हैं तथा चलते समय पूरा पदतल भूमि पर पड़ता है। अगले पैर (हाथ) प्राय: पिछले पैरों की अपेक्षा छोटे होते हैं और भोजन को उठाकर खाने में सहायक होते हैं। कभी-कभी यह प्रवृत्ति इतनी अधिक बढ़ी हुई होती है कि ये दो ही (पिछले) पैरों से कूदते हुए चलते हैं।
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1. साइयूरोमॉर्फ़ा (Sciuromorpha) अर्थात गिलहरी सदृश कृतक,
2. माइयोमॉर्फ़ा (Myomorpha) अर्थात, मूषकों जैसे कृंतक तथा
3. हिस्ट्रिकोमॉर्फ़ा (Hystricomorpha) अर्थात् साही के अनुरूप कृंतक।
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