"क्रान्ति": अवतरणों में अंतर
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== शब्द व्युत्पत्ति ==
कोपरनिकस ने सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति पर लिखे गए अपने लेख को "''ऑन द रिवौल्युशन ऑफ सेलेस्टियल बौडीज़'' " नाम दिया।
== राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक क्रान्तियां ==
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दूसरा समूह, जोकि चाल्मर्स जॉन्सन, नील स्मेल्सर, बौब जेसौप, मार्क हार्ट, एडवर्ड ए. तिर्याकियन, मार्क हैगोपियन जैसे शिक्षाविदों के द्वारा बना था, उसने टैल्कौट पारसंस और समाजशास्त्र की संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक सिद्धांत का अनुसरण किया; उन्होंने देखा कि समाज समग्र रूप से विभिन्न संसाधनों, मांगों और उपप्रणालियों के मध्य साम्यावस्था में है। जैसा कि सभी मनोवैज्ञानिक विचारधाराओं में होता है, उसी प्रकार असंतुलन के कारणों की परिभाषा के सम्बन्ध में उनका मत अलग-अलग था, लेकिन इस बात पर वह सहमत थे कि गंभीर असंतुलन ही क्रान्ति के लिए उत्तरदायी है।<ref name="Goldstonet3"/>
अंततः तीसरे समूह, जिसमे चार्ल्स टिली, सैमुएल पी. हटिंगटन, पीटर एम्मान और आर्थर एल. स्टिंकोकौम्बे जैसे लेखक शामिल थे, ने राजनीती शास्त्र के मार्ग का अनुसरण किया और बहुवादी सिद्धांत (प्लुरालिस्ट सिद्धांत) व हित समूह संघर्ष सिद्धांत पर निर्भर रहे।
दूसरी पीढ़ी के सिद्धान्तवादियों ने देखा कि क्रान्तियों का विकास एक दोहरी प्रक्रिया है; पहले, वर्तमान अवस्था में कुछ परिवर्तन ऐसा परिणाम देते हैं जो भूतकाल के परिणामों से भिन्न हैं; दूसरा, नयी अवस्था क्रान्ति के घटित होने के लिए एक अवसर प्रदान करती है। ऐसी अवस्था में, एक घटना जोकि भूतकाल में क्रान्ति करवाने के लिए पर्याप्त नहीं थी (जैसे, [[संग्राम|युद्ध]], दंगे, ख़राब फसल), वही अब इसके लिए पर्याप्त होती है- हालांकि यदि अधिकारी ऐसे खतरों के प्रति सचेत रहेंगे, तो इस अवस्था में भी वह विरोध को रोक सकते हैं (सुधार या दमनीकरण द्वारा)। <ref name="Goldstonet4"/>
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क्रान्तियों से सम्बंधित अनेकों प्रारंभिक अध्ययनों ने चार मौलिक मुद्दों पर केन्द्रित होने का प्रयास किया- प्रसिद्द एवम विवाद रहित उदाहरण जोकि वास्तव में क्रान्तियों की सभी परिभाषाओं के लिए सटीक है, जैसे कि [[गौरवपूर्ण क्रान्ति|ग्लोरियस रिवौल्युशन]] (1688), [[फ़्रांसीसी क्रान्ति|फ़्रांसिसी क्रान्ति]] (1789-1799), 1917 की रूसी क्रान्ति और चीनी क्रान्ति (1927-1949)। <ref name="Goldstonet4"/> हालांकि, प्रसिद्द हारवर्ड इतिहासकार, क्रेन ब्रिन्टन ने अपनी प्रसिद्द पुस्तक "द एनाटौमी ऑफ रिवौल्युशन" में [[अंग्रेज़ी गृहयुद्ध|अंग्रेजी गृहयुद्ध]], [[अमेरिकी क्रान्ति|अमेरिकी क्रान्ति]], फ़्रांसिसी क्रान्ति और रूसी क्रान्ति पर ध्यान केन्द्रित किया।<ref>क्रेन ब्रिन्टन, ''द ऐनाटॉमी ऑफ़ रेव्ल्युशन'', रिवाइस्ड एड. (न्यूयॉर्क, विंटेज बुक्स, 1965). पहला संस्करण, 1938.</ref>
समय के साथ, विद्वान् अन्य सैकड़ों घटनाओं का विश्लेषण भी क्रान्ति के रूप में करने लगे (क्रान्तियों व विद्रोहियों की सूची देखें) और उनकी परिभाषाओं व पद्धतियों में अंतर ने नयी परिभाषा व स्पष्टीकरण को जन्म दिया।
दूसरी पीढ़ी की अलोचाना के कारण सिद्धांतों की तीसरी पीढ़ी का जन्म हुआ, जिसमे थेडा स्कौकपॉल, बैरिन्ग्टन मूर, जैफ्री पेज और अन्य लेखक शामिल थे जोकि प्राचीन [[मार्क्सवाद|मार्क्सवादी]] वर्ग संघर्ष माध्यम के आधार पर विस्तार कर रहे थे, वह अपना ध्यान ग्रामीण कृषि राज्य संघर्ष, उच्चवर्गीय लोगों के साथ होने वाले राज्य संघर्ष और अंतर्राजीय आर्थिक व सैन्य प्रतिस्पर्धा द्वारा घरेलू राजनीतिक परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर केन्द्रित कर रहे थे। विशेषतः स्कौकपॉल की ''स्टेट्स एंड सोशल रिवौल्युशंस'' तीसरी पीढ़ी की सर्वाधिक प्रचलित कृतियों में से एक हो गयी; स्कौकपॉल ने क्रान्ति की व्याख्या करते हुए कहा "यह समाज के राज्यों और वर्ग संरचना का तीव्र, मौलिक रूपांतरण है।..जोकि निम्न स्तर के वर्ग आधारित विद्रोहों के द्वारा समर्थित व स्वीकृत होता है" और उन्होंने क्रान्तियों को राज्य, उच्चवर्ग और निम्न वर्ग से सम्बंधित विभिन्न संघर्षों के लिए उत्तरदायी ठहराया.<ref name="Goldstonet4"/>
[[चित्र:Thefalloftheberlinwall1989.JPG|thumb|left|बर्लिन वॉल के फौल और यूरोप में ऑटम ऑफ़ नेशन के सबसे अधिक इवेंट्स, 1989, अचानक और शांतिपूर्ण रहे थे।]]
1980 के दशक के अंतिम वर्षों से विद्वत्तापूर्ण कार्यों के एक नए निकाय ने तीसरी पीढ़ी के सिद्धांतों की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए।
अब क्रान्ति या विद्रोह को यूरोपीय हिंसक अवस्था बनाम जनता या [[वर्ग संघर्ष]] के रूप में परिभाषित करना पर्याप्त नहीं था। इस प्रकार क्रान्तियों का अध्ययन तीन दिशाओं में विकसित हुआ, पहला, कुछ अनुसंधानकर्ता क्रान्ति के पिछले या अद्यतनीकृत संरचनात्मक सिद्धान्तों को उन घटनाओं के सम्बन्ध में लागू कर रहे थे जो पूर्व में विश्लेषित नहीं थीं, अधिकांशतः यूरोपीय संघर्ष. दूसरा, विद्वानों के अनुसार क्रन्तिकारी लामबंदी व लक्ष्यों को वैचारिक मत व [[संस्कृति]] के रूप में आकार प्रदान करने के लिए जागरूक संस्था के प्रति और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता थी। तीसरा, क्रान्तियों और सामाजिक आन्दोलनों, दोनों ही क्षेत्र के विश्लेषकों ने यह अनुभव किया कि दोनों तथ्यों के बीच काफी कुछ उभयनिष्ठ है और विवादपूर्ण राजनीति के एक नए 'चौथी पीढ़ी' के साहित्य का विकास हुआ जोकि दोनों तथ्यों को समझाने की आशा में सामाजिक आन्दोलनों और क्रान्तियों दोनों के ही परीज्ञानों को जोड़ने का प्रयास करता है।<ref name="Goldstonet4"/>
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