"खण्डकाव्य": अवतरणों में अंतर
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[[संस्कृत]] साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा [[साहित्य दर्पण]] में उपलब्ध है वह इस प्रकार है-
इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह [[महाकाव्य]] के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार [[हिंदी]] के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो।
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