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भारतीय पौराणिक काव्यों में इस स्थान का वर्णन लंका के रूप में किया गया है। इतिहासकारों में इस बात की आम धारणा थी कि श्रीलंका के आदिम निवासी और [[दक्षिण भारत]] के आदि मानव एक ही थे। पर अभी ताजा खुदाई से पता चला है कि श्रीलंका के शुरुआती मानव का संबंध उत्तर भारत के लोगों से था। भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा, [[गुजराती भाषा]] और [[सिंधी भाषा]] से जुड़ी है।
 
प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहल वंश का शासन रहा है। समय-समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इस पर होता रहा है। तीसरी सदी ईसा पूर्व में [[मौर्य]] सम्राट [[सम्राट अशोक]] के पुत्र [[महेन्द्र]] के यहां आने पर [[बौद्ध धर्म]] का आगमन हुआ।
 
सोलहवीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने श्रीलंका में अपना व्यापार स्थापित किया। देश [[चाय]], [[रबड़]], [[चीनी]], [[कॉफ़ी]], [[दालचीनी]] सहित अन्य मसालों का निर्यातक बन गया। पहले [[पुर्तगाल]] ने [[कोलम्बो]] के पास अपना दुर्ग बनाया। धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने अपना प्रभुत्व आसपास के इलाकों में बना लिया। श्रीलंका के निवासियों में उनके प्रति घृणा घर कर गई। उन्होंने [[डच]] लोगों से मदद की अपील की। १६३० ईस्वी में डचों ने पुर्तगालियों पर हमला बोला और उन्हें मार गिराया, लेकिन इसका असर श्रीलंकाई पर भी हुआ और उन पर डचों ने और ज्यादा कर थोप दिया। १६६० तक [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] का ध्यान भी इस पर गया। [[नीदरलैंड]] पर [[फ्रांस]] के अधिकार होने के बाद अंग्रेजों को डर हुआ कि श्रीलंका के डच इलाकों पर फ्रांसिसी अधिकार हो जाएगा। तदुपरांत उन्होंने डच इलाकों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। १८०० ईस्वी के आते-आते तटीय इलाकों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। १८१८ तक अंतिम राज्य कैंडी के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद [[४ फरवरी]] [[१९४८]] को देश को [[संयुक्त राजशाही]] से पूर्ण स्वतंत्रता मिली।