"गाटफ्रीड लैबनिट्ज़": अवतरणों में अंतर
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{{Infobox philosopher
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गाटफ्रीड विलहेल्म '''लाइबनिज''' (Gottfried Wilhelm von Leibniz / १ जुलाई १६४६ - १४ नवम्बर १७१६) [[जर्मनी]] के [[दर्शनशास्त्र|दार्शनिक]], [[वैज्ञानिक]], [[गणितज्ञ]], [[राजनय|राजनयिक]], [[भौतिकी|भौतिकविद्]], [[इतिहास]]कार, [[राजनीति|राजनेता]], [[विधि]]कार थे। उनका पूरा नाम 'गोतफ्रीत विल्हेल्म फोन लाइब्नित्स' ([ˈɡɔtfʁiːt ˈvɪlhɛlm fɔn ˈlaɪbnɪts]) था। गणित के इतिहास तथा दर्शन के इतिहास में उनका प्रमुख स्थान है।
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गणित के क्षेत्र में लाइबनिज द्वारा किये गये शोध काफी महत्वपूर्ण रहे हैं। उसने [[कैलकुलस]] के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि कैलकुलस की शुरुआत काफी पहले ही यूनानी गणितज्ञों द्वारा वृत्त के क्षेत्रफल तथा बेलन, शंकु एवं गोलों के आयतन की गणना हेतु की जा चुकी थी, परन्तु वह कैलकुलस बिल्कुल प्रारम्भिक स्तर का था। लाइबनिज द्वारा कैलकुलस के विकास की दिशा में जो शोध किये गये वे मील के पत्थर साबित हुए। उसने [[अवकलन]] (डिफरेंशियशन) तथा [[समाकलन]] (इंटेग्रेशन) संबंधी जो संकेत शुरु किये उनका उपयोग आज तक किया जा रहा है।
सिर्फ विज्ञान के क्षेत्र में ही नहीं, अपितु अध्यात्म तथा दर्शन के क्षेत्र में भी लाइबनिज का योगदान काफी महत्वपूर्ण था। इस दिशा में उसके द्वारा अधिकांश कार्य सन् 1685 से सन् 1716 ई. के बीच किये गये। उसने दर्शन संबंधी अपने सिद्धांतों के लेखन का कार्य सन् 1686 ई. में ही पूरा कर लिया था जब उसने 'डिस्कोर्स मेटाफिजिक' नामक पांडुलिपि का लेखन कार्य पूरा किया। परन्तु दुर्भाग्यवश उसके द्वारा लिखित इस [[पांडुलिपि]] का प्रकाशन उसकी मृत्यु के लगभग 130 वर्षों के बाद सन् 1846 में किया जा सका। उसके जीवन काल में उसकी सिर्फ एक ही कृति प्रकाशित हो पायी थी जिसका नाम था 'एस्सेज डि थियोडिसी सुरला बोंटे डि डिउला लिबर्टी डि एल हिम्मे'। यह पुस्तक सन् 1710 ई. में दो खंडों में प्रकाशित हुई थी। हालांकि लाइबनिज द्वारा लिखित पुस्तकें अधिक प्रकाशित नहीं हुईं, परन्तु उसके द्वारा लिखे गये शोध पत्र समय-समय पर कई प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। जिन पत्रिकाओं में उसके शेध पत्र प्राय प्रकाशित होते थे, उनमें प्रमुख थीं-
लाइबनिज ने अपने समकालीन दार्शनिकों तथा वैज्ञानिकों को जो पत्र लिखे थे वे भी शोध स्तर के थे। उदाहरणार्थ उसने सैम्युएल क्लार्क को जो पत्र लिखे थे उनमें ईश्वर, आत्मा, काल एवं स्थान इत्यादि के संबंध में प्रतिपादित उसके सिद्धांतों की विस्तृत चर्चा की गयी थी। इन पत्रों में उसके द्वारा जो विचार व्यक्त किये गये थे वे सब के सब उच्च स्तर के दर्शन से संबंधित मालूम पड़ते हैं।
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