"गाथा": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: वर्तनी एकरूपता। |
||
पंक्ति 14:
:''रैभ्यासीदनुदेयी नाराशंसी न्योचनी।
:''सूर्याया भद्रमिद्वासो गाथयैति परिष्कृतम्॥ --
यह सहवर्गीकरण ऋक संहिता के बाद अन्य वैदिक ग्रंथों में भी बहुश: उपलब्ध होता है (तैत्तिरीय संहिता 7। 5। 11। 2; काठक संहिता 5। 2; ऐतरेय ब्राह्मण 6। 32; कौषीतकि ब्राह्मण 30। 5; शतपथ ब्राह्मण) 11। 5। 6। 8, जहां रैभी नहीं आता तथा गोपथ ब्राह्मण 2। 6। 12) इन तीनों शब्दों के अर्थ के विषय में विद्वानों में मतभेद है। भाष्यकार सायण ने इन तीनों शब्दों को अथर्ववेद के कतिपय मंत्रों के साथ समीकृत किया है। अथर्ववेद के 20वें कांड, 127वें सूक्त का 12वाँ मंत्र गाथा; इसी सूक्त का 1-3 मंत्र नाराशंसी तथा 4-6 मंत्र रैभी बतलाया गया है। इसी समीकरण को डाक्टर ओल्डेनबर्ग ऋग्वेद की दृष्टि में दोषपूर्ण मानते हैं, परंतु डाक्टर ब्लूमफील्ड की दृष्टि में यह समीकरण ऋक संहिता में स्वीकृत किया गया है।
|