"गुरुत्वाकर्षण": अवतरणों में अंतर

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: ''मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो ''
: ''विचित्रावतवस्तु शक्त्य:॥'' --- सिद्धांतशिरोमणि, गोलाध्याय - भुवनकोश
 
आगे कहते हैं-
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'''केप्लर का प्रथम नियम''': (कक्षाओं का नियम) -सभी ग्रह [[सूर्य]] के चारों ओर [[दीर्घवृत्त|दीर्घवृत्ताकार]] कक्षाओं मे चक्कर लगते हैं तथा सूर्य उन कक्षाओं के [[फोकस]] पर होता है।
 
'''द्वितीय नियम''' - किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समय मे समान क्षेत्रफल पार करती है। अर्थात प्रत्येक ग्रह की क्षेत्रीय चाल (एरियल वेलासिटी)नियत रहती है। अर्थात जब ग्रह सूर्य से दूर होता है तो उसकी चाल कम हो जाती है।
 
'''तृतीय नियम''' : (परिक्रमण काल का नियम)- प्रत्येक ग्रह का सूर्य का परिक्रमण काल का वर्ग उसकी दीर्घ वृत्ताकार कक्षा की अर्ध-दीर्घ अक्ष की तृतीय घात के समानुपाती होता है।
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उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m<sub>1</sub> और संहति वाले m<sub>2</sub> दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा :
 
: '''F=G m<sub>1</sub> m<sub>2</sub>/d‍<sup>2</sup>''' --- (१)
 
यहाँ '''G''' एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे [[गुरुत्व नियतांक]] (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की [[विमा]] (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है।